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    प्रेम की मिठास - ओशो

     

    प्रेम की मिठास  - ओशो Sweetness-of-love-Osho

    प्रिय सोहन, स्नेह। 

            मैं वाहर से लौटा तो तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा थी। पत्र और अंगूर साथ ही मिले।पत्र जो कि वैसे ही इतना मीठा था, और भी मीठा हो गया! मैं आनंद में हूं। तुम्हारा प्रेम उस आनंद को और बढ़ा देता है। सबका प्रेम उस आनंदको अनंतगुणा कर रहा है। एक ही शरीर कितना आनंद है, पर जिसे सब शरीर अप ने ही लग रहे हों, उसके साथ सिवाय ईर्ष्या करने के और क्या उपाय है? ईश्वर करे तुम्हें मुझसे ईर्ष्या हो-सबको हो, मेरी तो कामना सदा यही है। माणिक बाबू ने भी बहुत प्रीतिकर शब्द लिखे हैं। उन्हें मेरा प्रेम कहना। बच्चों को भी बहुत बहुत प्रेम। 

    रजनीश के प्रणाम
    १६ मार्च १९६५ प्रति : सुश्री सोहन वाफना, पूना 

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