• Recent

    सत्य प्रत्येक के भीतर है - ओशो

     

    Truth-lies-within-each-Osho

    सत्य प्रत्येक के भीतर है - ओशो 

    ग्वालियर (म. प्र.) 

    प्रिय आत्मन, स्नेह। 

            तुम्हारे पत्र को राह में पढ़ा, उसने मेरे हृदय को छू लिया है। जीवन सत्य को जानने की तुम्हारी आकांक्षा प्रवल हो तो जो अभी प्यास है वही एक दिन प्राप्ति वन जाती है। केवल एक जलती हुई अभीप्सा चाहिए। और कुछ भी आवश्यक नहीं है। ना दयां जैसे सागर को खोज लेती हैं वैसे ही मनुष्य भी चाहना करे तो सत्य को पा लेत है। कोई पर्वत, कोई चोटियां बाधा नहीं बनती है वरन उनकी चुनौती सुप्त पुरुषार्थ को जगा देती है। सत्य प्रत्येक के भीतर है। नदियों को तो सागर खोजना पड़ता है। हमारा सागर तो ह मारे भीतर है। और फिर भी जो उसके प्यासे और उससे वंचित रह जाएं, उन पर ि सवाय आश्चर्य के और क्या करना होगा? वस्तुतः उन्होंने ठीक से चाहा ही न होगा।

            ईसा का वचन है : मांगों और वह मिलेगा। पर कोई मांगे ही नहीं तो कसर किसका है? प्रभु को पाने से सस्ता और कुछ भी नहीं है। केवल उसे मांगना ही होता है। यद्यपि म ग जैसे-जैसे प्रवल होती है मांगने वाला वैसे ही वैसे विसर्जित होता जाता है। एक सी मा आती है, वाष्पीकरण का एक बिंदू आता है, जहां मांगने वाला पूरी तरह मिट जा ता है और केवल मांग हो शेष रह जाती है। यही बिंदु प्राप्ति का बिंदु भी है। जहां मैं नहीं है वही सत्य है। यह अनुभूति ही प्रभु अनुभूति है। अहं का अभाव ही ब्रह्म का सदभाव है। वहां सबको मेरे प्रणाम कहना। 


    रजनीश के प्रणाम
    २-१२-१९६३ प्रति : श्री रोहित कुमार मित्तल, खंडवा (म. प्र.)

    कोई टिप्पणी नहीं