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    प्रेम संगीत है, सौंदर्य है अतः धर्म है - ओशो

    प्रेम संगीत है, सौंदर्य है अतः धर्म है - ओशो Love-is-music-beauty-is-so-is-religion-Osho


    प्रिय सोहन वाई, स्नेह। 

            तुम्हारा पत्र मिला है। उन शब्दों से मुझे बहुत खुशी होती है छोटे छोटे फूल जैसे अनंत सौंदर्य को प्रकट कर देते हैं, वैसे ही हृदय की पूर्णता और गहराई से निकले हुए शब्द भी अनंत और विराट को प्रतिध्वनित करते हैं। प्रेम शब्दों में प्राण डाल देता है और उन्हें जीवन दे देता है। फिर क्या कहा जा रहा है, वह नहीं, वरन क्या कहना चाहा था, वह अभिव्यक्त हो जाता है। प्रत्येक के भीतर कवि है और प्रत्येक के भीतर काव्य है, पर हम गहराइयों में जाते हैं, वे एक अलौकिक प्रेम को अपने भीतर जागता हुआ अ नुभव करते हैं। और वह प्रेम उनके समग्र जीवन को सौंदर्य, शांति, संगति और काव्य से भर देता है।

            उनका जीवन ही संगीत हो जाता है। और उसी संगीत की भूमिका में सत्य का अवतरण होता है। सत्य के अवतरण के लिए संगीत आधार है। जीवन को संगीत बनाना आवश्यक है। उसके माध्यम से ही कोई सत्य के निकट पहुंचता है। तुम्हें भी संगीत बनना है। सारे जीवन को-छोटे-छोटे कामों को भी संगीत बनाओ। प्रेम से यह होता है। जो है, उसे प्रेम करो। सारे जगत के प्रति प्रेम अनुभव करो। अपनी श्वास-श्वास में समस्त के प्रति प्रेम की भावना से ही स्वयं में संगीत उत्पन्न हो ता है। क्या यह कभी देखा है? उसे देखो-प्रेम से अपने को भर लो और देखो। वही अधर्म है-वही केवल पाप है जो स्वयं में संगीत को तोड़ देता है। और वही धर्म है-वही केवल धर्म है जो स्वयं को संगीत से भरता है। प्रेम धर्म है क्योंकि प्रेम संगीत है और सौंदर्य है। प्रेम परमात्मा है क्योंकि वही उसे पाने की पात्रता है। वहां सब को मेरा प्रेम कहें। और अपने निकट भी मेरे प्रेम के प्रकाश को अनुभव करें। 

    रजनीश के प्रणाम
    ५ दिसंबर १९६४

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