प्रेम की सुवास - ओशो
प्रेम की सुवास - ओशो
प्यारी सोहन,
सुबह ही तेरा पत्र मिला। तू जिन प्रेम फूलों की माला गूंथती है, उनकी सुगंध मुझ त क आ जाती है। और तू जो प्रीति बेल वो रही है, उसका अंकुरण मैं अपने ही हृदय में अनुभव करता हूं। तेरे प्रेम और आनंद से पैदा हुए आंसू मेरी आंखों की शक्ति औ र चमक बन जाते हैं। और यह कितना आनंदपूर्ण है! १९ जन को कल्याण पर तेरी प्रतीक्षा करूंगा।
रजनीश के प्रणाम
१४-६-१९६५ (दोपहर) प्रति : सुश्री सोहन बाफना,
पूना
कोई टिप्पणी नहीं