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    मनुष्य को सब तरह से जैसे पकड़ लिया गया है जंजीरों में- ओशो

    मनुष्य को सब तरह से जैसे पकड़ दिया गया है जंजीरों में- ओशो


    मनुष्य को सब तरह से जैसे पकड़ लिया गया है जंजीरों में- ओशो 


               मैंने सुना है, एक नगर के द्वार पर एक राक्षस का निवास था। और बड़ी अजीब उ सकी आदत थी। वह जिन लोगों को भी द्वार पर पकड़ लेता, उनसे कहता कि मेरे पास एक बिस्तर है, अगर तुम ठीक-ठीक उस बिस्तर पर सो सके तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा। अगर तुम बिस्तर पर छोटे साबित हुए तो मैं। तुम्हें खींचकर बिस्तर के बराब र करने की कोशिश करूंगा। उसमें अक्सर लोग मर जाते हैं, तुम भी मर सकते हो, और अगर तुम लंबे साबित हुए तो तुम्हारे हाथ पैर काट करके बिस्तर के बराबर करने की कोशिश करूंगा और उसमें भी अक्सर लोग मर जाते हैं! और मैं तुम्हें बताये देता हूं कि अब तक एक भी मनुष्य उस बिस्तर से वापस नहीं लौट पाया. फिर में उसका भोजन कर लेता हूं।

               उस बिस्तर के बराबर आदमी खोजना मुश्किल था। या तो आदमी थोड़ा छेटा पड़ जाता, या थोड़ा बड़ा, और उसकी हत्या सुनिश्चित हो जाती। धर्मों ने भी मनुष्य को बनाने के ढांचे कर रखे हैं। आदमी या तो उनसे छोटा पड़ जाता है या बड़ा। और तब पंगू होने के अतिरिक्त अंग भंग हो जाने के अतिरिक्त को ई मार्ग नहीं रह जाता है। ऐसे पंगु करने वाले धर्मों ने जितना नूकसान किया है उत ना जिन्हें हम नास्तिक कहें, अधार्मिक कहें, उन लोगों ने भी नहीं किया है।

                मनुष्य को सब तरह से जैसे पकड़ दिया गया है जंजीरों में। बात मुक्ति की और स्वतंत्रता की है। लेकिन स्वतंत्रता और मुक्ति की बात करने वाले लोग ही कारागृह को खड़ा __ करनेवाले लोग भी हों, तो बड़ी कठिनाई हो जाती है। जीवन की धारा को सब तरह से बांधकर एक सरोवर बनाने की कोशिश की जाती है, जब कि सरोवर बनते ही सरिता के प्राण सूखने लगते हैं, उसकी मृत्यु होनी शुरू हो जाती है। सरिता का जीवन है अबाध बहे जाने में नए-नए रास्तों पर, नवीन-न वीन मार्गों पर, अज्ञात की दिशा में खोज करने में सरिता की जीवंतता है, उसकी लविंगनेस है और उसी अज्ञात के पथ पर, कभी उसका मिलन उस सागर से भी होता है, जिसके लिए उसके प्राण तड़पते हैं। कभी उस प्रेमी से उसका मिलना हो जा ता है। सरोवर है सब तरफ से बंद, दीवालें खड़े करके हर जाता है, फिर उसके प्रा ण सूखते तो जरूर हैं, कचरा उसमें इकट्ठा भी होता है, गंदगी उसमें भरती है, कीचड़ होती है। पानी तो धीरे-धीरे उड़ जाता है, धीरे-धीरे कीचड़ का धर ही वहां शेष रह जाता है। और उस सरोवर को, सागर से मिलने की सारी संभावनाएं फिर समाप्त हो जाती है।

    - ओशो 

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