तुम जैसे हो वैसा ही जगत अपने आस पास बना लोगे - ओशो
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ओशो |
तुम जैसे हो वैसा ही जगत अपने आस पास बना लोगे - ओशो
एक बूढ़ा आदमी गांव के बाहर बैठा था। दूसरे गांव से आते हुए एक राहगीर ने उससे पूछा कि क्या मैं यह पूछ सकता हूं कि गांव के लोग कैसे हैं। मैं यहां बसने का - इरादा रखता हूं। उस बूढ़े आदमी ने कहा, मैं यह बताऊंगा जरूर कि इस गांव के लोग कैसे हैं? लेकिन मैं पहले यह पूछ लूं कि तुम जिस गांव में बसते थे, वहां के लोग कैसे थे? उसके बाद ही कुछ बताना संभव हो सकता है।वह आदमी हैरान हुआ, उसने कहा, इससे क्या संबंध है कि उस गांव के लोग कैसे थे। उस बूढ़े ने कहा , फिर भी मैं पूछ लूं, जीवन भर का अनुभव मेरा यह कहता है कि पहले मैं पूछ लूं कि उस गांव के लोग कैसे थे। उसने कहा, उस गांव के लोगों का नाम भी मत लो। उन्हीं दृष्टों के कारण तो मुझे वह गांव छोड़ना पड़ा है। उस बूढ़े ने कहा, फिर और कोई गांव खोजो इस गांव के लोग बहुत बुरे हैं, बहुत दुष्ट हैं और यहां रहने से कोई सार नहीं होगा।
और उस बूढ़े आदमी ने ठीक ही कहा। और उस आदमी के जाने के बाद ही एक दूसरा आदमी आया और उसने पूछा कि मैं इस गांव में बसना चाहता है। यहां के लोग कैसे हैं? उसने फिर वही कहा कि पहले मैं यह पूछ लूं कि उस गांव के लोग कैसे थे, जहां से तुम आते हो? उसे आदमी ने कहा, उनका नाम ही मुझे आनंद से भर देता है। उतने बेहतर लोग मैंने कहीं देखे नहीं। वह बूढ़ा बोला, आओ स्वागत है, बसो। इस गांव में तुम्हें उस गांव से बेहतर लोग मिल जाएंगे।
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