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    कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य जैसा नहीं हो सकता - ओशो

    No-human-can-be-like-any-other-human-being--Osho
    ओशो 

    कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य जैसा नहीं हो सकता - ओशो 

              बुद्ध के जीवन में एक उल्लेख है। अपने पिछले जन्म में उन्होंने पिछले जन्मों की कथाएं कही हैं-जब वह बुद्ध हुए, उसके पहले जन्म में वे गांव में गए। वहां एक बुद्ध पुरुष था, उसका नाम था दीपंकर। वे गए और उन्होंने दीपंकर के पैर छुए। जब वे पैर छूकर उठे तो उन्होंने देखा कि दीपंकर उनके पैर छू रहा है। वे बहुत घबड़ा गए। और उन्होंने कहा कि यह क्या कर रहे हैं? मैं एक अज्ञानी हूं. मैं एक सामान्य जन हूं, मैं एक अंधकार से भरी हुई आत्मा हूं। मैंने आपके पैर छुए, एक प्रकाशित पूरुष के, यह तो ठीक था। आपने मेरे पैर क्या क्यों छए? दीपंकर ने कहा, तुमने अपने भीतर बैठी हुई प्रज्ञा का अपमान किया है, उसे बताने को। तुम मेरे पैर छू रहे हो यह सोचकर कि प्रकाश इनके पास है, और मैं तुम्हारे पैर छू रहा हूं, यह घोषणा करके को कि प्रकाश सबके पास है।

              वह प्रत्येक के भीत र जो बैठा हुआ है, उसे किसी के पीछे ले जाने की कोई भी जरूरत नहीं है। और जब हम उसे पीछे ले जाने लगते हैं तभी हम एक कांफिलक्ट में, एक अंत द्वंद्व में पड जाते हैं। असलियत यह है, इस जमीन पर, प्रकृति में, इस परमात्मा के राज्य में, दो कंकड़ भी एक जैसे नहीं होते हैं। दो पत्ते भी एक जैसे नहीं होते हैं। सारी जमीन को खोज आए दो पत्ते, दो कंकड़ एक जैसे नहीं मिलेंगे। दो मनुष्य भी एक जैसे कैसे हो सक ते हैं? प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है और इसलिए जब कोई व्यक्ति राम का अनुसरण करके राम बनने की कोशिश करता है, बुद्ध का अनुसरण करके बुद्ध बनने की को शश करता है, तभी भूल हो जाती है।

              इस जगत में परमात्मा ने प्रत्येक को अद्विती य बनाया है। कोई किसी का अनुकरण करके कुछ भी नहीं बन सकेगा। एक थोथा पाखंड और एक अभिनय भर होकर रह जाएगा। क्या इस बात के संबंध में इतिहास प्रमाण नहीं है? बुद्ध को मरे पच्चीस सौ वर्ष हुए क्राइस्ट को मरे दो हजार वर्ष होते है। इन दो हजा र वर्ष में कितने लोगों ने बुद्ध के पीछे चलने की कोशिश की है और कितने लोगों ने क्राइस्ट के, क्या कोई दूसरा क्राइस्ट या दसरा बुद्ध पैदा होता है? क्या यह दो हजार वर्ष, ढाई हजार वर्ष का असफल प्रयास इस बात की सूचना नहीं है कि यह कोशिश ही गलत है? असल में कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य जैसा नहीं हो सकता। जब भी मनुष्य किसी दूसरे जैसा होने की कोशिश करता है तभी वह अंत द्वंद्व में, एक कांफिलक्ट में, एक परेशानी में पड़ जाती है। जो वह है उसे तो भूल जाता है और जो होना चाहता है, उसकी कोशिश पैदा कर लेता है। इस भांति उसके भीतर एक बेचैनी, एक अशांति और एक संघर्ष पैदा हो जाता है।

    -ओशो 

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