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    जो जोड़ता है, वह आनंद को उपलब्ध होता है - ओशो

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    जो जोड़ता है, वह आनंद को उपलब्ध होता है -  ओशो 

              बुद्ध एक पहाड़ के करीब से गुजरते थे। एक हत्यारे ने वहां प्रतिज्ञा कर रखी थी, ए क हजार लोगों को मारने की उसने नौ सौ निन्यानबे लोग मार डाले थे, लेकिन अब रास्ता चलना बंद हो गया था। लोगों को पता हो गया था और रास्ता चलना बंद हो गया था। अब उस रास्ते पर कोई भी हनीं निकलता था। बुद्ध उस रास्ते पर गए । गांव के लोगों ने, जो अंतिम गांव था। उन्होंने कहा मत जाओ क्योंकि हत्यारा वह । अंगुलीमाल है। वह आपका भी सिर काट डालेगा। वह रास्ता निर्जन है, वहां कोई भी नहीं जाता।

              बुद्ध ने कहा, अगर वहां कोई भी नहीं जाता तो वह बेचारा हत्यारा, अकेला बहुत दुख में और पीड़ा में होगा। मुझे जाना चाहिए। अगर मेरी गर्दन कट जाए तो भी उ से खुशी होगी, उसका एक हजार का व्रत पुरा हो जाएगा। दूसरी बात, जो आदमी एक हजार आदमियों को मार कर भी दुखी नहीं हुआ है। उसके प्राण पत्थर हो गए होगे। उसके पत्थर प्राण उसे कितनी पीड़ा नहीं देते होगे। बुद्ध ने कहा, मुझे उन सौ निन्यानबे लोगों के मर जाने की उतनी पीड़ा नहीं जितनी उस आदमी के हृद य की पीड़ा है, उसके हृदय पर कितना बड़ा पत्थर होगा। मुझे जाने दें।

              बुद्ध वहाँ गए। वहां एक छोटी सी घटना घटी। बुद्ध को आते देखकर, उनकी सीधी और शांत आकृति देख कर अंगुलीमाल को थोडी सी दया आयी। सोचा, भिक्षु है, भूल से आ गया। और तो कोई आता नहीं है। उसने दूर से चिल्लाकर कहा कि भिक्ष. वापस लौट जाओ। क्या तुम्हें पता नहीं, अंगुलीमाल का नाम नहीं सुना? और सभी हत्यारे चाहते हैं कि उनका नाम सुना जाए, उसी के लिए हत्या करते हैं। उसने चिल्लाकर कहा, अंगुलीमाल का नाम नहीं सुना । बुद्ध ने कहा, सुना  है, और उसी की खोज में मैं भी आया हूं। अंगुलीमाल थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, क्या तुम्हें पता नहीं कि मैं तुम्हारी गर्दन काट दूंगा? नों सौ निन्यानवे लोगों को मैने मारा है।

              बुद्ध ने कहा, मैं भी मरूं, क्योंकि मृत्यु निश्चित है | आज नहीं कल मर जाऊंगा। लेकिन तुम्हें अगर थोड़ी खुशी मिल सके और तुम्हार व्रत पूरा हो जाए तो मृत्यु मेरी सार्थक हो जाएगी। अंगुलीमाल थोड़ा परेशान हुआ | इस तरह की बातें उसने जीवन में कभी नहीं सुनी थी। उसने दो तरह के लोग देखे थे-वे जो उसकी तलवार को देखकर भाग जाते हैं और ये जो उसकी तलवार को देखकर तलबार निकाल लेते थे। इस आदमी के पास न तो तलवार थी और न यह आदमी भाग रहा था, क्योंकि आ रहा था। यह बिलकु ल तीसरी तरह का आदमी था जो अंगुलीमाल ने नहीं देखा था।

              बुद्ध करीब आए, अंगुलीमाल से उन्होने कहा कि तुम इसके पहले कि मुझे मारो, क्या एक छोटा सा काम मेरा कर सकोगे? और एक करते हुए आदमी की याचना कौन इनकार करेगा ? अंगुलीमाल भी इनकार नहीं कर सका। बुद्ध ने कहा, यह जो सामने वृक्ष है, इस के थोड़े से पत्ते तोड़ कर मुझे दे दो। उसने अपनी तलवार से एक शाखा काटकर बुद्ध के हाथ में दे दी। बुद्ध ने कहा, तुमने मेरी बात मानी। क्या एक छोटी से बात और मान सकोगे? इस शाखा को वापस जोड़ दो। वह अंगुलीमाल हैरान हुआ। उसने कहा, यह तो असंभव है। वापस जोड़ देना असंभव है। बुद्ध हंसने लगे और उन्होंने कहा, फिर तोड़ना तो बच्चे भी कर सकते थे, पा गल भी कर सकते थे। इसमें कोई बहादुरी नहीं, इसमें कोई पुरुषार्थ नहीं कि तुमने तोड़ी। जोड़ो तो कुछ बात है। तोड़ना तो कोई भी कर सकता है।

              और बुद्ध ने कहा , स्मरण रखना, जो तोड़ता है, वह निरंतर दुखी होता जाता है। और जितना ज्यादा दुखी होता है, उतना ज्यादा तोड़ता है और जितना ज्यादा तोड़ता है, उतना ज्यादा दुखी होता जाता है। अंगुलीमाल ने पूछा, सच, मैं तो बहुत दुखी हूं। क्या कोई रास्ता भी है कि मनुष्य आनंदित हो सके? बुद्ध ने कहा, जो जोड़ता है, वह आनंद को उपलब्ध होता है। अंगुलीमाल ने वह तलवार फेंक दी। उसने कहा कि मैं जोड़ने का विज्ञान सीखूंगा।

    - ओशो 

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