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    स्वं का होना ही असली होना है - ओशो

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    स्वं का होना ही असली होना है - ओशो 

             ऐसा एक दफा हुआ, ऐसी एक घटना घटी। चार्ली चेप्लिन को उसके जन्म दिन पर, एक विशेष जन्म दिन पर, पचासवी वर्ष गांठ पर, कुछ मित्रों ने चाहा कि एक अि भनय हो। सारी दुनिया से कुछ अभिनेता आए और चार्ली चेप्लिन का अभिनय करें और उनमें जो प्रथम आ जाए, ऐसे तीन लोगों को पुरस्कार इंग्लैंड की महारानी दे।

              सारे यूरोप में प्रतियोगिता हुई। सौ प्रतियोगी चुने गए। चार्ली चेप्लिन ने मन में सोचा कि, मैं भी किसी दूसरे गांव से जाकर, क्यों न सम्मिलित हो जाऊं। मुझे तो प्रथम पुरस्कार मिल ही जाना है। इसमें में कोई शक सुबह की बात नहीं। मैं खुद चार्ली चेप्लिन हूं। और जब बात खुलेगी तो लोग हंसेंगे, एक मजाक हो जाएगी। मजाक हुई जरूर, लेकिन दूसरे कारण से हुई। चार्ली चेप्लिन को द्वितीय पुरस्कार मिला।

              और जब बात खुली कि खुद चार्ली चेप्लिन भी उन सौ अभिनेताओं में सम्मिलत थे,  तो सारी दुनिया हंसी और हैरान हो गई कि यह कैसे हुआ? एक दूसरा आदमी बाजी ले गया ? चार्ली चेप्लिन होने की प्रतियोगिता में और चार्ली खुद नंबर दो रह गए?

              तो हो सकता है, राम हार जाएं। महावीर के साधुओं से महावीर हार जाएं, बुद्ध के भिक्षुओं से बुद्ध हार जाएं, क्राइस्ट के पादरियों से क्राइस्ट हार जाएं। इसमें कोई हैरानी नहीं। लेकिन यह जानना चाहिए कि चाहे कोई कितना ही कुशल अभिनय करे, उसके जीवन में सुवास नहीं हो सकती, वह कागज का ही फूल होगा। वह असली फूल नहीं हो सकता। और इस चेष्टा से कि वह दूसरे का अंधानुकरण करे, वह एक बहुमूल्य अवसर खो देगा जो स्वयं की निजता को पाने का था। ऐसी ही हो जाएगी बात।

    -ओशो 

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