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    अगर सत्य मिलना होगा तो एक ही स्मरण में, एक ही प्रवेश में पर्दा टूट जायेगा - ओशो

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    अगर सत्य मिलना होगा तो एक ही स्मरण में, एक ही प्रवेश में पर्दा टूट जायेगा -  ओशो 

              एक साधु हुआ है, वह तो कोई फकीर नहीं था, कोई गैरिक वस्त्रों को उसने नहीं प हना था और उसने कभी अपने घर को नहीं छोड़ा। वह साठ वर्ष का हो गया, उस का पिता भी जिंदा था। उसके पिता की उम्र तब नब्बे वर्ष की थी। उसके पिता ने उसे बुलाकर कहा कि देखो। मैं तुम्हें साठ वर्ष से देख रहा हूं, तूने एक भी दिन भगवान का नाक नहीं लिया, तुम एक भी दिन मंदिर नहीं गए, तुमने एक भी दिन सदवचनों का पाठ नहीं किया। अब मैं बूढ़ा हो गया और मरने के करीब हूं, तो मैं तुमसे कहना चाहता हूं, तुम भी बूढ़े हो गए हो, कब तक प्रतीक्षा करोगे? नाम  लो प्रभु का, प्रभु के विचार को स्मरण करो, मंदिर जाओ, पूजा करो।

              उसके बूढ़े लड़के ने कहा, मैं भी आपको कोई चालीस वर्षों से मंदिर जाते देखता हूं, पाठ करते देखता हूं मेरा भी मन होता था कि रोक दूं, यह पाठ। मंदिर और यह मस्जिद जाना व्यर्थ हो गया है। आप रोज-रोज वही कर रहे हैं। अगर पहले दिन ही परिणाम नहीं हुआ __ तो दूसरे दिन कैसे परिणाम होगा, तीसरे दिन कैसे परिणाम होगा, चौथे दिन कैसे परिणाम होगा? जो बात पहले दिन परिणाम नहीं ला सकी है, वह चालीस वर्ष दोहराने से भी परिणाम नहीं लाएंगे, क्योंकि पहले दिन के बाद निरंतर परिणाम कम होता जाएगा, क्योंकि हम उसके आदी होते जाएंगे। उसके लड़के ने कहा, मैं भी कभी जाऊंगा, लेकिन एक ही बार। मैं भी स्मरण करूंगा लेकिन एक ही बार, क्योंकि दुबारा का कोई भी अर्थ नहीं होता है। जो होना है, वह एक बार में हो जाना चाहिए, नहीं होता है, तो नहीं होगा।

              कोई उस घटना के पांच वर्षों के बाद, पैंसठ वर्ष की उम्र में उस साधू ने  भगवान का  नाम लिया और नाम लेते ही उसकी श्वास भी समाप्त हो गयी और वह गिर भी गया, उसका निर्वाण भी हो गया। यह अकल्पनीय मालूम होता है कि कैसे होगा? लेकिन जब भी होता है, यही होता है। एक ही घटना में, एक ही स्मरण में, एक ही प्रवेश में पर्दा टूट जाता है और अगर एक ही में न टूटे तो समझना, वही चोट बार-बार करनी बिलकुल व्यर्थ है। तो मैं कुछ बातें, कुछ विचार, जिनके प्रति हम मर गए हैं, जिन्हें सुनते-सुनते हम जिन के आदमी हो गए हैं, जिनकी खोज विलीन हो गयी है, उनके संबंध में कुछ बातें। आपको कहूं, शायद कोई कोण आपको दिखायी पड़ जाए और कोई बात, कोई क्रांति आपके भीतर संभव हो सके।

    - ओशो 


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