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    मंदिर वही है जो हमारे भीतर है, जो मंदिर भीतर नहीं हैं, वह झूठा है - ओशो

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    मंदिर वही है जो हमारे भीतर है, जो मंदिर भीतर नहीं हैं, वह झूठा है - ओशो 

              किसी देश में एक साधु को कुछ लोगों ने जाकर कहा, कुछ शत्रु तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं और वे तुम्हें समाप्त करना चाहते हैं। उस साध ने कहा, अब कोई भी डर नह i है, जब वे मुझे समाप्त करने आएंगे तो मैं अपने किले में जाकर छिप जाऊंगा उस साधु ने कहा, जब वे मुझे समाप्त करने आएंगे तो मैं किले में जाकर छिप जाऊंगा । वह तो एक फकीर था, उसके पास एक झोपड़ा भी नहीं था। उसके शत्रुओं को य ह खबर पड़ी और उन्होंने यह सुना कि उसने कहा है कि जब मुझ पर कोई हमला होगा तो मैं अपने किले में छिप जाऊंगा, वे हैरान हुए।

              उन्होंने एक रात उसके झोपडे पर जाकर उसे पकड़ लिया और पूछा कि कहां है तुम्हारा किला? वह साधु हंसने लगा और हृदय पर हाथ रखा और कहा, यहां है मेरा किला। और जब तुम मुझ पर हमला करोगे तो मैं यहां छिप जाऊंगा। असल में मैं वहीं छिपा हआ है। और इसलिए मुझे किसी हमले का कोई डर नहीं है। लेकिन यहां है किला, उसका हमें कोई भी पता नहीं है।

              वे लोग भी, जो धर्म की बातें करते हैं, ग्रंथ पढ़ते हैं, गीता, कुरान, बाइबिल पढ़ते हैं, वे लोग भी जो भजन कीर्तन करते हैं, शिवालय और मंदिर मस्जिद में जाते हैं उनको भी यहां, जो हरेक मनुष्य के भीतर एक केंद्र है, उसका उन्हें भी कोई पता नहीं है। उनकी भी बातें, बातों में ज्यादा नहीं हैं, इसलिए उसका कोई परिणाम जीवन में दिखायी नहीं पड़ रहा है। सारी जमीन पर धार्मिक लोग हैं, लेकिन धर्म बिल कुल ही दिखायी नहीं पड़ता है। और सारी जमीन पर मंदिर हैं, मस्जिद हैं, गिरजाघर हैं, लेकिन उनका कोई भी परिणाम, कोई प्रभाव, कोई प्रकाश जीवन में नहीं है। इसके पीछे एक ही वजह है कि हम उस मंदिर से परिचित नहीं हैं जो हमारे भीतर है. और हम केवल उन्हीं मंदिरों से परिचित हैं जो हमारे भीतर नहीं है। स्मरण र हे, जो मंदिर भीतर नहीं हैं, वह मंदिर झूठा है। स्मरण रखें, वे मूर्तियां जो बाहर रथापित की गयी हैं और वे प्रार्थनाएं जो बाहर हो रही हैं, झूठी हैं। असली मंदिर औ र असली परमात्मा प्रत्येक मनुष्य के भीतर बैठा हुआ है।

    -ओशो 

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