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    धर्म से बड़ा विज्ञान इस जगत में दूसरा नहीं है - ओशो

    Science-is-no-different-in-this-world-than-religion---Osho


    धर्म से बड़ा विज्ञान इस जगत में दूसरा नहीं है - ओशो 


    श्रद्धा धर्म के लिए आधार नहीं रह जानी चाहिए। ज्ञान, विवेक, शोध को धर्म का अंग हो जाना चाहिए। अगर यह हो सका तो धर्म से बड़ा विज्ञान इस जगत में दूसरा नहीं है। और जिन लोगों ने धर्म को खोजा और जाना है. उनसे बडे वैज्ञानिक नहीं ह ए। यह उनकी अप्रतिम खोज है। मनुष्य के जीवन में उस खोज से बहुमूल्य कुछ भी नहीं है। उन सत्यों की थोड़ी-सी भी झलक मिल जाए तो जीवन अपूर्व आनंद और अमृत से भर जाता है।

    तो मैं आपसे कहूंगा, विवेक-जागरण श्रद्धा नहीं है। स्वीकार कर लेना नहीं, शोध क र लेना। किसी दूसरे को अंगीकार कर लेना नहीं स्वयं अपनी साधना और आपने पैर ों पर खड़ा होना और जानना, चाहे अनेक जन्म लग जायें। दूसरे के हाथ से लिया सत्य, अगर एक क्षण में मिलता हो तो भी किसी कीमत का नहीं है। और अगर अ नेक जन्मों के श्रम और साधना से, अपना सत्य मिलता हो तो उसका मूल्य है। और जिनके भीतर थोड़ी भी मनुष्य की गरिमा है, जिनको थोड़ा भी गौरव है कि हम मनुष्य हैं, वे किसी के दिये हुए झूठे सत्यों को स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन हम सब झूठे सत्यों को स्वीकार किये बैठे हैं। और हमने अच्छे-अच्छे शब्द ई जाद कर लिये हैं, जिनके माध्यम से हम अपनी श्रद्धा को जाहिर करते हैं। यह बहु त बड़ी प्रवंचना है, यह बहुत बड़ा डिसेप्शन है। यह समाप्त होना जरूरी है। मैं आप से कहूंगा, आपके भीतर बहुत बार श्रद्धा होती होगी कि मान लें तो कमजोर मन है। कौन खुद खोजे। जितने आलसी हैं, जितने तामसी हैं, वे सब श्रद्धालु हो जायेंगे।

    लेकिन कौन खुद को खोजे, खुद कि कौन चेष्टा करे? कृष्ण कहते हैं तो ठीक ही होगा और महावीर कहते हैं तो ठीक ही होगा, क्राइस्ट कहते हैं तो ठीक ही होगा। उन्होंने सारी खोज कर ली, हमें तो सिर्फ स्वीकार कर लेना है। यह वैसा ही पागलपन है जैसा कोई आदमी दूसरों को प्रेम करते देख कर यह समझे कि मुझे प्रेम करने से क्या प्रयोजन! दूसरे लोग प्रेम कर रहे हैं, मुझे तो सिर्फ सम झ लेना है, ठीक है! लेकिन दूसरे को प्रेम करते देख कर क्या आप समझ पायेंगे कि प्रेम क्या है? इस जगत में सारे लोग प्रेम करते हों, मैं देखता रहूं तो भी मैं नहीं समझ पाऊंगा, जब तक कि वह आंदोलन मेरे हृदय में न हो। जब तक कि वे किर णे मुझे आंदोलित न कर जायें, जब तक कि वे हवाएं, मुझे न छू जायें, तब तक मैं प्रेम को नहीं जान सकूँगा। सारी दुनिया प्रेम करती हो तो वह किसी मतलब का न हीं। सारी दुनिया बुद्ध, कृष्ण और क्राइस्ट से भरी पड़ी हो और मुझे सत्य का स्वयं अनु भव न होता हो तो मुझे कुछ पता न चलेगा। कोई रास्ता नहीं है। सारी दुनिया में आंख वाले हों और मैं अंधा हूं तो क्या होगा? उन सबकी मिली हुई आंखें भी, मेरी दो आंखों के बराबर मूल्य नहीं रखती हैं। दस दुनिया में दो अरब लोग हैं, तीन अ रब लोग हैं, छह अरब आंखें हैं। एक अंधे आदमी की दो आंखों का जो मूल्य है, व ह छह अरब आंखों का नहीं है। मैं आपसे यह कहना चाहूंगा, अपने भीतर श्रद्धा की जगह, विवेक को जगाये रख ने का उपाय करना चाहिए

     - ओशो 

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