• Recent

    जो बीत गया, उसमें चिपटे रहने से जागना संभव नहीं - ओशो

    It-is-not-possible-to-stay-awake-by-sticking-to-what-has-passed---Osho
    ओशो


    चित्त निरंतर बह रहा है नदी की तरह - ओशो 

              बुद्ध के ऊपर एक आदमी ने आकर थूक दिया। थूककर वह चला भी गया, फिर बाद में पछताया और दुखी हुआ, क्योंकि बुद्ध ने तो उस थूक को सिर्फ पोंछ लिया था, और उस आदमी से कहा था, कुछ और कहना है?

              किसी भिक्ष ने पूछा, आप कहते हैं, कुछ और कहना है? और उस आदमी ने थूका है। बुद्ध ने कहा, कोई बात इ तनी प्रगाढ़ रूप से कहना चाहता होगा जिसे शब्द कहने में समर्थ नहीं हो सके, इस लए थूककर उसने जाहिर किया है। गुस्सा तेज है, उसने गुस्से को जाहिर किया है। इसलिए में पूछता हूं कुछ और कहना है? यह तो समझ गया।

              लेकिन वह आदमी कुछ कह नहीं सका, वापस चला गया, पछताया, दूसरे दिन क्षमा मांगने आया। उस ने बुद्ध के पैर छुए और उसने कहा, मुझे माफ कर दें। मुझसे कल भूल हो गई थी। बुद्ध ने कहा, वह भूल उतनी बड़ी नहीं थी जितनी बड़ी भूल यह है कि तुम अब तक उसे याद रखे हो। बुद्ध ने कहा वह भूल उतनी बड़ी नहीं थी। तूने थूका, मैंने पोंछ दिया, बात समाप्त हो गयी मामला ही क्या है, दिक्कत कहां है, कठिनाई क्या है उसमें, लेकिन यह कि तुम अभी तक उसे याद रखे हो चौबीस घंटे बीत गए, यह तो बहुत बड़ी भूल है। यह तो वह बहुत बड़ी भूल है। मैं तुम्हें वही आदमी नहीं मनिता हूं, जो थूक गया था, यह दूसरा आदमी है जो मेरे सामने आया है, क्योकि यह तो कह रहा है कि मुझसे भूल हो गयी है, मुझे क्षमा कर दो यह वह आदमी न ही है जो थूक गया था, बिलकुल दूसरा आदमी है। मैं किसको क्षमा करूं, जो थूक गया था वहे तो अब कही है नहीं और जो क्षमा मांग रहा है उसने मुझ पर थूका न हीं था।

              बुद्ध ने कहा, जिसने मुझ पर थूका था, वह अब है नहीं, कही भी इस दुनिया में। खोजने पर भी नहीं मिलेगा, और जो क्षमा मांग रहा है, उसने मुझ पर थूका नहीं। मैं किसको क्षमा करूं और तुम किससे क्षमा मांग रहे हो? जिस पर थूक गए थे, वह तो बह गया।

              जैसे नदी बही जा रही है, हम सोचते हैं वही गंगा है, जिस पर हम कल भी आए थे। गंगा बह गयी। बहुत पानी बह गया, जब आप कल आए थे। अब यह बिलकुल दूसरा पानी है, जिसको आप कल की गंगा समझ रहे हैं। और जसे गंगा बह जाती है, वैसे आपको चित्त भी बह रहा है। वह प्रति क्षण बह्य जा रहा है, कुछ भी ठहराव नहीं है उस चित्त में। बुद्ध ने कहा, तुम किससे क्षमा मांगते हो? व ह आदमी तो गया, में कैसे क्षमा करूं| तो बुद्ध ने कहा, इतना ही स्मरण रखो जो हो गया, उसे जाने दो, बह जाने दो, जो है, उसमें जागो।।

             हम, जो बीत गया है उसमें इतने चिपटे रहते हैं कि जो उसमें नहीं जाग पाते। हम सारे लोग मूर्दा लाशों को लिए रहते हैं, इसलिए जिंदा आदमी नहीं हो पाते। अतीत को मर जाने दें तो आपको जीवन मिलेगा। और जो आदमी जितने अतीत को मर जाने देगा और रोज नया हो जाएगा, रोज ताजा हो जाएगा, वह ऐसे जागेगा जैसे पहली बार दुनिया में पैदा हुआ है। उस आदमी के भीतर जड़ता इकट्ठी नहीं होगी।

    - ओशो 


    कोई टिप्पणी नहीं