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    दुखी आदमी हिंसक होता है और हिंसक आदमी दुखी - ओशो

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    दुखी आदमी हिंसक होता है और हिंसक आदमी दुखी -  ओशो 

              चंगेज दिल्ली आया उसने आते से, दस हजार बच्चों के सिर कटवा दिए और और उनको भालों पर लगवाकर जुलूस निकलवाया आगे। लोगों ने पूछा, यह तुम क्या करते हो? उसने कहा, ताकि दिल्ली में लोगों को याद रहे कि कोई आया था। वह खुश था दस हजार बच्चों के सिर कटवाकर। यह आदमी जरूर बहुत दुखी रहा होगा। इसके दुख का अंत न होगा। इसके भीतर नर्क ही रहा होगा, तभी तो इसे खुशी मिल सकी। जब हिंदुस्तान से वापस लौटा, एक गांव में  रुका। कुछ वेश्याएं, रात को उसके दरबार में नाचने आयी।  आधी रात में, दो बजे जब वेश्याएं लौटने लगी तो उन्होंने कहा, हमें डर लगता है, र स्तेि में अंधेरा है। चंगेज ने कहा अपने सैनिकों को, रास्ते में जितने गांव पड़ते हैं, सब में आग लगा दो ताकि इन वेश्याओं को याद रहे कि चंगेज के दरबार में नाचने गयी थीं तो आधी रात में भी उसने दिन करवा दिया।

          सारे गांव में आग लगा दी गई, कोई बीस गांव जला दिए गए। उसमें सोए लोग वहां जल गए। लेकिन वेश्याओं के रास्ते पर प्रकाश कर दिया। यह आदमी जरूर भीतर गहरे नर्क में रहा होगा। चंगेज सो नहीं सकता था। हिटलर भी नहीं सो सकता था, स्टेलिन भी नहीं सो सकता था। भीतर एक गहरी पीड़ा रह होगी, कितना गहरा दुख रहा होगा कि दूसरे के दुख का दुख तो अनुभव नहीं हुआ, बल्कि दूसरे को दुख देने में एक खुशी अनुभव हुई। हम सारे लोग दुखी हैं। अगर आप दुखी हैं, तो आप स्मरण रखिए, आपका हाथ युद्ध में है। अगर आप दुखी हैं

              तो आप युद्ध की आकांक्षा कर रहे हैं। अगर आप दुखी हैं तो आप दूसरे के लिए दुख पैदा कर रहे हैं। हम सार लोग मिलकर दुख पैदा कर रहे हैं-सामूहिक रूप से, 8 यक्तिगत रूप से, राष्ट्रों के रूप से। और जब सारी दुनिया बहुत दुख से भर जाती हैं , दस पंद्रह वर्ष में, दुख के सिवाय हमारे दुख के रिलीफ का, निकास का कोई रास ता नहीं रह जाता। युद्ध राजनैतिक घटना मात्र नहीं है, हमारे पूरे मानसिक नर्क का निकास है, रिलीफ है। जब भीतर बहुत पीड़ा इकट्ठी हो जाती है, एक दुख सारी दु निया में हम पैदा कर देते हैं, पागलपन पैदा कर देते हैं। दस पंद्रह वर्ष के लिए फि र एक हल्की शांति छा जाती है। दस पंद्रह वर्ष में हम फिर इकट्ठे कर लेते हैं।

              अगर कोई व्यक्ति इस बात के लिए उत्सुक है कि दुनिया में शांति हो और युद्ध न हो, हिंसा न हो तो सबसे पहले उसे इस बात पर विचार करना होगा कि उसके स्व यं के जीवन में दुख न हो। यह पहली बात है जो मैं आपसे निवेदन करना चाहता है। अगर आप प्रफुल्लित और आनंदित हैं. अगर आप अपने जीवन में चौबीस घंटे खुशी बिखेर रहे है, फूल बिखेर रहे हैं, खुशबू और सुगंध बिखेर रहे हैं तो आप युद्धके खिलाफ काम कर रहे हैं। आप एक ऐसी दुनिया के बनाने के काम में लगे हुए हैं, जहां युद्ध नहीं हो सकेंगे। अगर दुनिया में अधिक लोग खुश हो तो युद्ध असंभव हो जाएगा। युद्ध को रोकने के लिए और कोई रास्ता नहीं है, सिवाय इसके कि दुनि या में आनंद की गहरी पर्ते बिखेरी जाएं।

    -ओशो 

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