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    दो महायुद्ध हमारे भीतर की बहुत गहरी विक्षिप्तता और पागलपन को दर्शाते है - ओशो

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    दो महायुद्ध हमारे भीतर की बहुत गहरी विक्षिप्तता और पागलपन को दर्शाते है

              मनुष्य जाति के अत्यंत प्राथमिक क्षणों की बात है। अदम और ईव को स्वर्ग के बगीचे से बाहर निकाला जा रहा था। दरवाजे से अपमानित होकर निकलते हुए अदम ने ईव से कहा, तुम बड़े संकट से गुजर रहे हैं। यह पहली बात थी, जो दो मनुष्यों के बीच संसार में हुई, लेकिन पहली बात यह थी कि हम बड़े संकट से गुजरे रहे हैं। और तब से अब तक कोई बीस लाख वर्ष हुए, मनुष्य जाति और बड़े और बड़े संकटों से गुजरती रही है। यह वचन सदा के लिए सत्य हो गया। ऐसा कोई समय न र हा, जब हम संकट में न रहे हों, और संकट रोज बढ़ते चले गए हैं।

              एक दिन अदम को स्वर्ग के राज्य से निकाला गया था, धीरे-धीरे हम कब नर्क के राज्य में प्रविष्ट हो गए, उसका भी पता लगाना कठिन है। आज तो यह कहा जा सकता है, इधर तीन हजार वर्षों का इतिहास ज्ञात है। तीन हजार वर्षों में साढ़े चार हजार युद्ध हुए हैं। यह घबड़ाने वाली और आश्चर्य कर देने वाली बात है। तीन हजार वर्षों में मनुष्य ने साढ़े चार हजार लड़ाइयां लड़ी हों तो यह तो जीवन शांति का जीवन नहीं कहा जा सकता। अब तक हमने कोई शांति काल नहीं जाना है। दो तरह के हिस्सों में हम मनुष्य के इतिहास को बांट सकते हैं -युद्ध का समय, और युद्ध के लिए तैयारी का समय। शांति का कोई समय, कोई खंड अभी तक ज्ञात नहीं है।

              निश्चित ही, कोई बहुत गहरी विक्षिप्तता, कोई बहुत गहरा पागलपन मनुष्य को पकड़े होगा। कोई रास्ता अब खोज लेना जरूरी है। पुरानी  लड़ाइयां बहुत छोटी लड़ाइयां थी और उनके बाद भी हम बचते चले आए हैं। लेकिन अब शायद जो युद्ध होगा, उसमें मनुष्य को बचने का भी। कोई उपाय न हो। अल्बर्ट आइंस्टीन से मरने के पहले किसी ने पूछा, तीसरा महायुद्ध में किन शस्त्रों का उपयोग होगा? आइंस्टीन ने कहा, तीसरे के प्रति कहना कठिन है, लेकिन चौथे के  संबंध में कहा जा सकता है। सुनने वाला, पूछने वाला हैरान हुआ। उसने पूछा चौथे में किन शस्त्रों का उपयोग होगा? अगर मनुष्य बचा रहा-क्योंकि बचने की कोई संभावना नहीं है, अगर बचा रहा, तो फिर से पत्थर के हथियारों से लड़ाई शुरू कर नी पड़ेगी।

              चूंकि तीसरा महायुद्ध, बहुत संभावना इस बात की है कि सारी मनुष्य जाति को ही नहीं, बल्कि समस्त जीवन मात्र को समाप्त कर दे। पिछले महायुद्ध में पांच करोड़ लोगों की हत्या हुई। पांच करोड़ लोग छोटी संख्या नहीं हीं है। दोनों पिछले युद्धों में मिलाकर दस करोड़ लोग मारे गए। शायद हमें खयाल भी नहीं है कि इन दस करोड़ लोगों की हत्या करने में हमारा भी हाथ है। हम जो यहां बैठे हैं, हम जिम्मेवार है। कोई भी मनुष्य इस जिम्मेवारी और उत्तरदायित्व से बच नहीं सकता। जो भी जमीन पर हो रहा है, उस सब में हमारे हाथ हैं। दो महा युद्ध हमारे भीतर से पैदा हुए और हमने इतनी बड़ी हत्या की । और अब तो हमार ी तैयारी बहुत बड़ी है।

    -ओशो 

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