सिद्धार्थ उपनिषद Page 167
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आध्यात्म का पूरा सन्देश है - विश्राम और संसार का पूरा सन्देश है - काम . करते रहो संसार है , होते रहो संन्यास है . होने का सन्देश अध्यात्म है , करने का सन्देश संसार है . अब तुम संसार के कारोबार को थोड़ा छोड़ो , अब थोड़ा विश्राम में आ जाओ . और जो विश्राम में होता है वही गीत गाता है . बहुत जो व्यस्त होता है वह गीत नही गा सकता है . इसलिए संत चैन की वंशी बजाते हैं . चैन की बंशी बजाने के पहले चैन तो हो , विश्राम तो हो . हमें मंगलगीत गाना है ; अब संसार की आपाधापी में तुम मंगलगीत नहीं गा सकते हो भजन-कीर्तन तो दूर तुम प्रेम-गीता के फ़िल्मी गीत भी नहीं गा सकते हो .बड़ी विश्रामपूर्ण अवस्था चाहिए . कहीं एक सम्यकता हमें खोजनी होगी . मैंने भी खोजा है ; सुबह 9 बजे तक मैं बहुत विश्राम में रहता हूं . उसी समय गजल लिखता हूं , गीत लिखता हूं , शबद लिखता हूं . वह मेरे परम विश्राम का समय है ; बस होना ! चाय पीना , फल खाना , चक्रमण करना . पहले मैं सोचता था कि तीन महीने के लिए यहां से कहीं एकांत में चला जाऊं . जहां कोई नहीं हो . क्यों ? क्योंकि इस तरह की गजल लिखनी है तो विश्राम जरूरी है , समय के पार रहना जरूरी है अगर तुम समझते हो कि समय में होकर के तुम कबीर , नानक और मीरा के पद लिख सकते हो , तो यह नहीं संभव है . समय के पार होना जरूरी है .
मैंने कई बार शैलेन्द्र जी से , मां से कहा कि मुझे लगता है कि तीन महीने के लिए कहीं परम एकांत में जाना चाहिए . उन्होंने कहा नहीं यह तो संभव नहीं है . फिर मैंने मध्य का मार्ग निकाला . तीन महीने एक साथ नहीं तो कम से कम तीन घंटे तो रोज निकाल सकते हैं . जब बिलकुल समय नहीं है , कुछ व्यस्तता नहीं है .
अगर गोविन्द का तुम्हें मंगल गीत गाना है तो अहंकार छोड़ो . अहंकार क्या है ? मैं कुछ हूं , दूसरे मुझे मूल्य दें . अब दूसरे से मुक्त हो जाओ , मैं से मुक्त हो जाओ . मैं तभी है जब दूसरा है , दूसरे से सम्बंधित है . दूसरा है ही नहीं तो मैं कहां है .
एक ' मैं ' छोड़ना है दूसरा ' मेरा ' छोड़ना है . मोह का क्या मतलब हुआ - ' मेरे ' की पकड़ . विकार क्या है ? काम , क्रोध , लोभ , घृणा , मोह ईर्ष्या , द्वेष . अब ये छोड़ो और नज़र एक ' निरंजन ' पर टिकाओ . दो शब्द बड़े प्यारे हैं - " अलख - निरंजन " . अलख का अर्थ है पारदर्शी ; नज़र बिलकुल थ्रू जाती है . निरंजन का अर्थ है जो रंगहीन है , जिसमे कोई रंग नहीं है . आकार जितने हैं सबका रंग है याद रखना . आकार हमेशा रंगीन है . और निराकार हमेशा रंगहीन है .
गोविन्द का मंगल गीत गाना है तो किसी संत का किसी सद्गुरु का सेवक बन जाओ . और याद रखना प्रभु का गीत गाने के लिए उदासी नहीं उमंग चाहिए . चेहरे पर एक मुस्कान हो , एक उमंग हो , मिलन का उल्लास हो .
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