सिद्धार्थ उपनिषद Page 165
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भारत की पूरी संस्कृति भगवान राम पर आधारित है . और भगवान राम में तीन प्रमुख गुण हैं - शील , सौंदर्य और शक्ति . ओशो कहते हैं निश्चित भगवान राम में यह तीनों हैं , मगर फिर भी कुछ कमी है . और कमी क्या है ? उनमें उत्सव नहीं है , उनमें प्रेम नही है . और भगवान राम में जो भी है वह भगवान कृष्ण में है ही है - शील है , सौंदर्य है , शक्ति है . भगवान राम में दो तत्व नहीं थे - प्रेम और उत्सव . वह भी दोनों तत्व कृष्ण में आकर के पूरा हो जाता है .और 2500 साल बाद अगर कोई कृष्ण चेतना पृथ्वी पर प्रकट हुई , कृष्ण जैसा पूर्ण व्यक्तित्व धरती पर प्रकट हुआ तो वो ओशो हैं . कृष्ण के व्यक्तित्व में ये जो दो तत्व विशेष हैं जरा इनकी चर्चा मैं खास करना चाहूंगा क्योंकि कमोवेश ओशो की देशना इसी पर आधारित है , ओशोधारा की संस्कृति भी इसी पर आधारित है : प्रेम और उत्सव . प्रेम का अर्थ है - किसी की उपस्थिति का जब हम मजा लेते हैं तो वह प्रेम है . और जब किसी ग्रुप की उपस्थिति का मजा लेते हैं , समष्टि की उपस्थिति का मजा लेते हैं तो वह उत्सव है .
देखने में उत्सव और सेलिबिरेशन करीब-करीब समानार्थ शब्द लगते हैं . लेकिन इसमें थोड़ा फर्क है . उत्सव शब्द आया है उत्स से , सोर्स से . उत्स में सोर्स है जान है , जीवंतता है , उत्सव में एक-एक व्यक्ति का भी मूल्य होता है . सेलिबिरेशन शब्द सेलिस्टरा से आया है , सेलिस्टरा का अर्थ है ब्रह्मांड . इसमें जान नहीं है . इसलिए उत्सव में जो जीवंतता है वह सेलिबिरेशन में नहीं है . सेलिबिरेशन का ज्यादा संबंध परिस्थिति से है और उत्सव का ज्यादा संबंध व्यक्तियों से है .
और ये दो अंतर पूरब और पश्चिम के अंतर को बड़ा स्पष्ट करता है . पूरब की पूरी संस्कृति खास करके कृष्ण की संस्कृति वह प्रेम पर आधारित है , उत्सव पर आधारित है . पश्चिम की पूरी संस्कृति भोग और सेलिबिरेशन पर आधारित है . प्रेम और भोग में बड़ा अंतर है . व्यक्ति की उपस्थिति का मजा लेना प्रेम है , परिस्थिति का मजा लेना भोग है . पश्चिम की पूरी संस्कृति भोग पर आधारित है , वहां व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है , आयोजन महत्वपूर्ण है . पदार्थ महत्वपूर्ण है .
पूरब में परिस्थिति उतनी महत्वपूर्ण नहीं है , व्यक्ति मत्वपूर्ण है , जो भी चेतना है वह महत्वपूर्ण है . अमरीका के समाज को मैंने बहुत नजदीकी से देखा है ; वहां तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद , तमाम सुंदर सिस्टम के बावजूद आदमी निराश है , हताश है . क्योंकि आदमी जब भी अकेला है वो हताश हो जाता है . इसलिए पश्चिम के लिए ओशो एक संभावना हैं , कृष्ण में सगुण के साथ उत्सव मनाना , सगुण के साथ रास रचाना तो है ही साथ ही साथ वे अकेले में भी आनंदित हैं , वे अकेले का भी मजा ले सकते हैं . निश्चित कृष्ण पूर्ण हैं . क्योंकि अकेले का भी मजा है और समूह का भी मजा है .
अगर पश्चिम कृष्ण को अडाप्ट कर लेता है तो आज जो उनका पूरा समाज आत्मघात की ओर बढ़ रहा है वह उत्सव की तरफ बढ़ जाएगा . अमरीका की मैं जो संभावना देख रहा हूं कि अगर वह कृष्ण चेतना पर आधारित हो जाए तो बात बदल जाएगी .
भगवान राम आज के युग में प्रासांगिक नहीं हैं , लेकिन भगवान कृष्ण के साथ एक बड़ी सुंदर बात ये है कि जैसे-जैसे समय बीतता चला जाएगा वे और - और ज्यादा प्रासांगिक होते चले जायेंगे . और सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार फिर से कृष्ण चेतना ओशो के रूप में अवतरित हुई है और ओशो फिर से प्रेम और उत्सव का सन्देश ले कर आये हैं . जहां पर केवल आयोजन का मजा नहीं लेना है , बल्कि वहां एक जीवंतता है . दोनों बातें एक साथ हैं : एकांत का भी मजा है , समूह का भी मजा है . तो ये सन्देश लेकर आप जा सकते हैं और पूरे विश्व में कृष्ण-चेतना का प्रचार और प्रसार ओशो के माध्यम से कर सकते हैं .
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