सिद्धार्थ उपनिषद Page 159
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सतत जागरण में जीने का एक ही तरीका है-- " सांस-सांस सुमिरे गोविन्द " . जागरण क्या है ? दरिया साहब कहते हैं-" दरिया सोता सकल जग जागत नाहिं कोय , जागे में फिर जागना जागृति कहिये सोय . " अर्थात जो स्वयं के प्रति, आत्मा के प्रति और परमात्मा के प्रति जागा हुआ है . और जागने का क्या तरीका है ? सतत उसकी याद में रहो . आत्मा के प्रति जागना और पमात्मा के प्रति जागना दोनों एक ही हैं . मोहम्मद साहब कहते हैं - " तू ही खुदा है , ये बूँद ही सागर है , सूत ही चादर है , खेत ही पृथ्वी है . तो तुम खेत के प्रति जागो तो पृथ्वी के प्रति जागरण हो जाएगा , सूत के प्रति जागो तो चादर के प्रति जागरण हो जाएगा , बूँद के प्रति जागो तो सागर के प्रति जागरण हो जाएगा . कहीं तो जागो . एक जगह भी जागरण शुरू हुआ तो परम जागरण घटित हो जाएगा .शर्त ये है कि सांस-सांस सिमरो गोविन्द : जब सांस लो तो परमात्मा के प्रति जागो और सांस छोडो तो स्वयं के प्रति जागो . ओशोधारा में प्रेम समाधि तक आत्म जागरण तुमको बताया जाएगा . जब अद्वैत समाधि में आओगे तो दोनों के प्रति जागरण बताया जाएगा . दो धाराएँ हैं : ज्ञान योग और भक्ति योग . कुछ लोग केवल आत्म जागरण करते हैं जैसे बुद्ध , महावीर . ज्ञानयोग केवल आत्म जागरण की बात करता है . भक्ति योग केवल परमात्मा की बात करता है . लेकिन ओशोधारा में हम दोनों को ले कर चलते हैं , हम संवृति मार्ग की बात करते हैं . ये एक बहुत बड़ी चुनौती है ; दोनों को एक साथ साधना . आती सांस में परमात्मा की याद और जाती सांस में स्वयं की याद .
अब तक चार परम्पराएं थी . (1) ध्यान की परंपरा-- बुद्ध , महावीर . (2) समाधि की परंपरा-- महर्षि पतंजलि . (3) सुमिरन की परंपरा-- गोरख , कबीर , दादू . (4) साक्षी की परंपरा-- कृष्ण , अष्टावक्र , जनक . हमने ओशोधारा में चारों की सिनर्जी कर दी , चारों को मिला दिया . जागो !!! आत्मा के प्रति जागो , परमात्मा के प्रति जागो , दोनों के प्रति साथ-साथ जागो . तो अब बड़ी मौज है , बड़ी मौज है .
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