सिद्धार्थ उपनिषद Page 158
सिद्धार्थ उपनिषद Page 158
(444)
मीरा बड़ी प्यारी बात कहती है -- " मनुवा राम-नाम रस पीजै , काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह को चित्त से बहाए दीजै . मनुवा राम-नाम रस पीजै . "दोनो काम साथ-साथ करना है , कोई शर्त नहीं है कि पहले मुर्गी होगी कि अंडा होगा . ये बात मत करो . एक तरफ प्रज्ञा से तुम काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष को साधो और एक तरफ समाधि से तुम स्नान करो और इन सबसे तुम मुक्त हो जाओगे . ध्यान में समाधि में , आत्मा का स्नान करो और सुमिरन से श्रृंगार करो . फिर बात बन जाएगी
Page - 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20