सिद्धार्थ उपनिषद Page 157
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संन्यास का अर्थ हुआ मध्य में ठहर जाना . संन्यास का अर्थ हुआ परमात्मा की भक्ति के संकल्प में जीना , संन्यास का अर्थ हुआ संसार के प्रति मोह को त्याग देना . संन्यास का अर्थ हुआ परमात्मा की भक्ति के संकल्प में जीना , संन्यास का अर्थ हुआ संसारके प्रति मोह को त्याग देना . संसार क्या है ? इस बात को ठीक से समझ लो ; संसार ये पेड़ नहीं है ये गृह-नक्षत्र , तारे , मनुष्य , जीव-जंतु ये संसार नहीं है . छह अरब की आबादी है दुनियां में और तुम्हारा संसार मुश्किल से 600 लोग , और बहुत लोगों का संसार बस मियां-बीवी-बच्चे : बस हो गया संसार . इसके बाद इनको दिखाई ही नहीं देता है . एक मेढक के लिया कुआँ ही उसका संसार है . अधिकतर लोग कूप-मंडूप हैं . अपने परिवार से बियांड सोचते ही नहीं . वही उनका संसार है . लेकिन कुछ लोग हैं जो गाँव की सोचते हैं , कुछ और लोग हैं जो प्रदेश की सोचते हैं , कुछ और लोग हैं जो देश की सोचते हैं , और संत पूरे विश्व की सोचते हैं . केवल मनुष्यों की ही नहीं सोचते , जीव-जंतुओं की भी सोचते हैं . और पूरी कायनात की सोचते हैं .संत सांसारिक नहीं होते हैं . लेकिन विश्व के कल्याण के लिए , विश्व के मंगल के लिए संत हमेशा सोचता रहता है . संसार का मतलब है तुम्हारे संबंधों का संसार . संन्यास का मतलब हुआ मै अब अपने सम्बन्धियों तक संसार को नहीं रखता . मेरा संसार पूरी वसुधा हो गई - " वसुधैव कुटुम्बकं " .
संन्यास एक घोषणा है अब मेरा परिवार मेरे बायोलाजिकल परिवार तक सीमित नहीं है . मियां-बीवी-बच्चे बायोलाजिकल परिवार हुआ . अब पूरा वैश्विक जगत मेरा परिवार है : ये संन्यास है . अर्थात मोह से मुक्ति , तथाकथित संबंधों के संसार से मुक्त हो जाना संन्यास है .