सिद्धार्थ उपनिषद Page 154
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भक्ति दो प्रकार की होती है -- एक का नाम है गौणी भक्ति और एक का नाम है पराभक्ति . गौणी भक्ति में इष्ट की भक्ति होती है और पराभक्ति में निर्गुण , निराकार , अस्तित्व की भक्ति होती है . एक हुकुमी है और एक हुकुम है . हुकुमी कौन है जो हुकुम देता है , जो हुकुम का निर्माण करता है , परम नियम का निर्माण करता है . और हुकुम क्या है- जो चलाता है .जैसे भारतवर्ष है ; पार्लियामेंट क्या है ? पार्लियामेंट हुकुम बनाता है , वो हुकुमी है . और जितने आफीसर्स हैं वो क्या हैं : हुकुम हैं . तंत्र हुकुम चलता है . पुलिस हैं , मजिस्ट्रेट हैं , कलेक्टर हैं , आदि , ये सब हुकुम हैं . ये नियम नही बनाते है , नियम को चलाते हैं . इसी तरह पार्लियामेंट नियम चलाता नहीं है उसको बनाता है . तो परमात्मा है हुकुमी . और हुकुम के अंतर्गत आते हैं : त्रिदेव (विष्णु-शिव-ब्रह्मा ) और इनके अंतर्गत अनेक देवताओं का जाल है .
गौणी भक्ति से तुम्हें स्वास्थ्य मिलेगा , धन मिलेगा , सांसारिक सुख मिलेगा . पर आनंद नहीं मिलेगा . जब तुम हुकुमी , निर्गुण , निराकार गोविन्द की भक्ति करते हो तो आनंद मिलेगा , संसार नहीं मिलेगा . कबीरदास जी के गुरु रामानंद जी ने दोनों को साधा और उनका संसार और आध्यात्म दोनों सुंदर रहा .कबीर साहब , संत पलटू दास , गुरु अर्जुनदेव आदि बहुत से संत सिर्फ निर्गुण निराकार कि भक्ति लेकर ही चले उन्होंने गौणी भक्ति को मूल्य नहीं दिया . और उन्हें संसार में बहुत कठिनाइयों को झेलना पड़ा . स्वयं ओशो दोनों को लेकर नहीं चले , ओशो केवल निर्गुण निराकार को लेकर चले , इसलिए उनको अंत में बहुत परेशानियों को झेलना पड़ा .
मै भी पहले ऐसे ही करता था केवल निर्गुण , निराकार , इष्ट से कोई लेना-देना नहीं. बाद में देखा कि ये लोग स्वयं मैत्री को तैयार हैं , स्वयं रक्षा के लिए तैयार हैं , स्वयं कुछ करने के लिए तैयार है ; और ये सब गोविन्द के बड़े प्रिय हैं . शिव जी बड़े प्रिय है , विष्णु जी बड़े प्रिय हैं गोविन्द के . अब हम कहें कि ये गोविन्द के प्रिय हों या अप्रिय हमें इनसे क्या लेना-देना , हमें तो केवल निर्गुण निराकार गोविन्द से लेना-देना है . हमें सम्यक होना है . जब दोनों मित्र हो सकते हैं तो कोई मूरख ही होगा जो कहे हम इनको मूल्य नहीं देते हम तो सिर्फ अस्तित्व को मूल्य देते हैं . इसलिए ओशोधारा को मै रामानंदीय धारा कहता हूं . हम रामानंद की परंपरा के हैं . हमें सबको मूल्य देना है , हमें सबका आदर करना है .