सिद्धार्थ उपनिषद Page 153
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सम्बोधि के भी सात तल हैं : सम्बोधि के सोपानों पर जैसे-जैसे ऊपर चलते जाते हो जिंदगी वैसे-वैसे करवट बदलती चली जाती है . जिंदगीके आगे महाजिन्दगी , महाजिन्दगी के आगे परमजिंदगी , परमजिंदगी के आगे सहजजिंदगी , सहजजिंदगी के आगे अचलजिंदगी , उसके आगे और , ओर ...हमें चलते जाना है और प्रभु को उपलब्ध हो जाना है . प्रभु से संवाद करना है . प्रभु को जानो और प्रभु से प्रेम करो , प्रभु से संवाद करो . प्रभु से संवाद होता है , हो सकता है . संत करते हैं : जैसे हम तुमसे बात कर रहे हैं वैसे तुम प्रभु से बात कर सकते हो . वह सुनता है : संत कहते हैं प्रभु सुनता है , प्रभु कहता है संत सुनते हैं . बड़ी मौज की घड़ी होती है.
सभी को आमंत्रित करता हूं . और जो चल रहे हैं उनके लिए कहता हूं-- " कि रुकना नहीं , थोड़ी देर भी रुकना नहीं तुम्हें पता ही नहीं है कि थोड़ी देर रुक जाने से दूर हो जाती है मंजिलें - सिर्फ हम ही नहीं चलते , रास्ते भी चलते हैं . इसलिए रुक मत जाना क्योंकि " तुम्हें पता ही नहीं है कि कौन सा सौभाग्य तुम्हारा इन्तजार कर रहा है . " मानवता के इतिहास में पहली बार ऐसा सौभाग्य उदित हुआ है . आज से पहले न वैदिक युग में , न उपनिषद के ऋषियों के समय में , न बुद्ध के , न महावीर के समय में में यह सौभाग्य था . ऐसा सौभाग्य ऐसी घड़ी पहले कभी नहीं आई थी जो आज उपस्थित है . इस सौभाग्य से चूक मत जाना . इतना लबालब परमात्मा देने को तैयार है इतना अमृत देने को तैयार है . कंजूसी मत करना ! बाल्टी भर-भर के ले जाना , टब भर-भर के ले जाना , गिलास लेकर के यहां ओशोधारा में मत आना , जितना उठा सको उतना भर-भर के ले जाना . बड़े सौभाग्य की घड़ी है , और बहुत ही अद्भुत घड़ी है . उपनिषद के ऋषियों की तरह मैं भी तुमसे कहता हूं- ' उठो जागो और श्रेष्ठ ज्ञान को प्राप्त करो . '