सिद्धार्थ उपनिषद Page 150
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ओंकार की मुख्य रूप से दस प्रकार की ध्वनि सुनाई पड़ती है . ध्वनि दो प्रकार की हैं-- एक स्थूल ध्वनि एक सूक्ष्म ध्वनि . बांयी तरफ से स्थूल ध्वनि सुनाई पड़ती है , दाहिनी तरफ से सूक्ष्म ध्वनि सुनाई पड़ती है . जैसे - मधुमखी का भिनभिनाना , झींगुर का बोलना , ये सब स्थूल ध्वनियां हैं . शंख की ध्वनि , मेघ गरजने की ध्वनि , सितार की ध्वनि , बांसुरी की ध्वनि , ये सूक्ष्म ध्वनियां है . थोड़ी सूक्ष्म ध्वनि तो तुम सुन सकते हो , लेकिन जो अंतिम ध्वनि है बांसुरी की ध्वनि वो तुम नहीं सुन सकते , तुम नहीं पकड़ सकते . वो सूक्ष्म ध्वनि गोविन्द का रिस्पांस है . अगर वह ध्वनि सुन लो तो मजा आ जाता है . एक मिनट , दो मिनट , और वह गई . क्योंकि वह ध्वनि तुम परमात्मा की इच्छा से सुनते हो . थोड़ी देर भी वह ध्वनि आ जाए फिर क्या !!! जिंदगी का मजा आ जाता है .लेकिन असली बात ध्वनि का सुनना नहीं है . असली बात सुरति है , असली बात निरति है , असली बात उसका सुमिरन है . तो ज्यादा सुनने के चक्कर में मत पड़ो : सुनना आरंभ है , अनाहत नाद आरंभ है . वहां से बात शुरू होती है . उसके बिना बात शुरू ही नही होती है . यह महत्त्व पूर्ण है कि वहां से बात शुरू होती है . लेकिन स्मरण रखना -- " सितारों से आगे जहां और भी हैं , अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं ."