सिद्धार्थ उपनिषद Page 144
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ऐसा कह सकते हो की निवृत्ति मार्ग- आल एक्सक्लूसिव - सब छोड़ दिया तुमने.प्रवृत्ति मार्ग- आल इंक्लूसिव- सब सम्मिलित कर लिया तुमने की कुछ बाकी नहीं रहा.
कई बार लोग पूछते हैं की ओशो धारा में सुमिरन का मन्त्र दिया जाता है. ओशो ने इतना जोर नही दिया मन्त्र पर और कहीं न कहीं जब हम मन्त्र देते हैं तो हमारे लोग किंचित दुविधा में फंस जाते हैं. आज गुरु पूर्णिमा के बहाने से मैं चाहूँगा की तुम मन्त्र के महत्व को समझ लो,
निवृत्ति मार्ग में मन्त्र की ज़रूरत नहीं है- क्यूँ? क्यूँ की निवृत्ति मार्ग में मन बचता ही नहीं है, मन्त्र है क्या? मन को जो एक विधायक दिशा दे. उसका नाम मन्त्र है. मन को जो डायरेक्शन दे, मन को जो डेस्टिनेशन दे, मन को जो गंतव्य दे- उसी का नाम मन्त्र है.
प्रवृत्ति मार्ग जो है वहां मन हमेशा उपयोगी है-
सारे संत कहते हैं की
सुमिरन कर ले मेरे मना ------तोहे बीती उम्र हरिनाम बिना.
प्रारंभिक साधना निवृत्ति मार्ग है.
एडवांस्ड साधना प्रवृत्ति मार्ग है- शुरू में ध्यान की साधना करते हो, समाधि की साधना करते हो, साक्षी की साधना करते हो. तो आत्मा की भूमि पर विश्राम करते हो.. वहां मन नहीं बचता- ध्यान में मन कहाँ बचता है? समाधि में मन कहाँ बचता? लेकिन जब भक्ति की साधना में चलते हो- सुमिरन के मार्ग पर चलते हो...प्रवृत्ति मार्ग पर चलते हो तो सारा खेल तो मन का है.. सुमिरन तो चेतना ही करती है...सुमिरन तो मन ही करता है.. तो मन को छोड़ कर प्रवृत्ति मार्ग पर नहीं चला जा सकता बल्कि मन तो सबसे बड़ा हथियार हमारा होता है , इसीलिए मन को दिशा देना बहुत जरूरी है- मन को दिशा नहीं दोगे तो मन तुम्हे दिशा दे देगा... ले जाएगा अपने पीछे-पीछे ले जाएगा. तो इसीलिए प्रवृत्ति मार्ग में मन्त्र के बिना एक कदम नहीं उठा सकते- गोरखनाथ, कबीर, दादू, दरिया, चरण दास, संत मत की पूरी परम्परा बिना मन्त्र के एक कदम नही उठाती.