सिद्धार्थ उपनिषद Page 141
सिद्धार्थ उपनिषद Page 141
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किसी ने ओशो से सवाल पूछा था की जब आप बुद्ध पर बोलते हैं तो हमे बुद्ध अच्छे लगते हैं और लगता है की बुद्ध का मार्ग ही हमारा मार्ग है, जब आप मीरा पर बोलते हैं तो हमे मीरा अच्छी लगती हैं और लगता है की मीरा का भक्ति मार्ग ही हमारा मार्ग है ,पतंजलि पर बोलते हैं तो पतंजलि अच्छे लगने लगते हैं.लगता है की पतंजलि ही हमारा मार्ग है, ऐसे ही जब आप तंत्र पर बोलते हैं, सांख्य पर बोलते हैं, कृष्ण पर बोलते हैं तो लगता है वही हमारा मार्ग है- आप बताएं की हमारा मार्ग क्या है? ओशो ने कहा की मैं जिसपर बोलता हूँ वही तुम्हे अच्छा लगता है तो एक छोटी सी बात तुम्हे क्यूँ समझ में नहीं आती की मैं ही तुम्हारा मार्ग हूँ!(424)
हर युग में संत आते हैं- अनेक प्रकार के मार्गों से वे ले जाते हैं .. लेकिन एक शिष्य के लिए उसका गुरु ही उसका मार्ग है......... मैं हैरान होता हूँ- की मुझसे बहुत सवाल लोग पूछते हैं, शैलेन्द्र जी से पूछते हैं- माँ से पूछते हैं.. लेकिन एक सवाल आज तक किसी ने नहीं पूछा की आप किस मार्ग से हमे ले जा रहे हैं मंजिल की और- परमात्मा की और.. ये आपकी श्रद्धा का द्योतक है... सद्गुरु ने बाहे पकड़ लिया है- थाम लिया है.. अब ये क्या पूछना की सद्गुरु कहाँ ले जा रहे हैं? किधर ले जा रहे हैं..जिस निर्जन सागर में लहरी, अम्बर के कानन में गहरी,
रुक कर मौन कथा कहती हो.. ताज कोलाहल की अवनी रे..
ले चल मुझे भुलावा दे कर ,मेरे नाविक धीरे-धीरे.
ये शिष्य की श्रद्धा है .