सिद्धार्थ उपनिषद Page 140
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स्वयं को चिन्मय आत्मा के रूप में जानना आत्मज्ञान है . यह प्रथम सम्बोधि है . बिना आत्मज्ञान के न साक्षी की स्सधना हो सकती है , न सुमिरन की . हां , निराकार को जानकार ध्यान की साधना हो सकती है . अंतराकाश को जानकार समाधि की साधना हो सकती है . लेकिन साक्षी और सुमिरन की साधना के लिए आत्मज्ञान अपरिहार्य है .
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ओशोधारा में आठवें तल का कार्यक्रम 'ज्ञान-समाधि' है .इसमें आत्मज्ञान की साधना होती है . अपनी चिन्मय आत्मा का साक्षात्कार होता है और उससे तादात्म्य बनता है . इस कार्यक्रम को करने के बाद साधना के सभी द्वार खुल जाते हैं . इसलिए ओशोधारा के साधकों को यथाशीघ्र ज्ञान समाधि करने की सलाह डी जाती है .
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सक्रिय प्रेम क्या है ? और निष्क्रिय प्रेम क्या है ? जिस प्रेम में हमारी चेतना बाहर की ओर जाती है , वह सक्रिय (ऐक्टिव) प्रेम है . जिस प्रेम में हमारी चेतना अपने भीतर की ओर जाती है , वह निष्क्रिय (पैसिव) प्रेम है .
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जिस सुमिरन में हमारी चेतना विराट परमात्मा की ओर जाती है , वह सक्रिय (ऐक्टिव) सुमिरन है . जिसमें हमारी चेतना भीतर आत्मा कि ओर मुड़ती है , वह निष्क्रिय (पैसिव) सुमिरन है . आती सांस के साथ परमात्मा और जाती सांस के साथ आत्मा का सुमिरन साक्षी सुमिरन है .