सिद्धार्थ उपनिषद Page 99
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प्रेम के दो मित्र हैं --सम्मान और अहोभाव. सम्मान दूसरे में गुण देखता है. अहोभाव दूसरे से जो मिला, उस पर नज़र रखता है. ऐसा भी कह सकते हैं कि प्रेम के दो पंख हैं-- सम्मान और अहोभाव.
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सुमिरन जीने की कला है. सुमिरन में जीना भक्ति है. प्रमुखता क्रम की दृष्टि से सुमिरन के निम्न आयाम हैं - 1. गहरी सांस, 2. मन्त्र, 3. नाद श्रवण, 4. प्रभु स्मरण, 5. सद्गुरु स्मरण, 6. प्रेम, 7. आत्म स्मरण.
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गहरी सांस के बिना सुमिरन नहीं हो सकता. सामान्यतः हम एक मिनट में २० बार सांस लेते हैं. सुमिरन के लिए एक मिनट में लगभग १५ बार सांस लेना चाहिए. चक्रमण सुमिरन सर्वाधिक प्रभावशाली माना जाता है, क्योंकि उसमें स्वतः ही सांस गहरी हो जाती है.
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मन्त्र सुमिरन का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है. यह सुमिरन की निरंतरता बनाए रखता है. मन्त्र छूटते ही सुमिरन छूट जाता है.
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नाद श्रवण सुमिरन का तीसरा महत्वपूर्ण तत्व है. नाद ही आत्मा-परमात्मा का बोधक तत्व है. पतंजलि कहते हैं- " तस्य वाचकः प्रणवः. " नाद से ही उसकी उपस्थिति का पता चलता है. नाद सुनने का सर्वोत्तम तरीका है अपनी चेतना को अपने निराकार के दाहिने भाग में स्थित जानकर नाद श्रवण.