सिद्धार्थ उपनिषद Page 98
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चेतना के विश्राम के लिए श्रेष्ठतम तरीका सुमिरन है. राजस्थान के दरिया साहब कहते हैं--" जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम. गिरह हमारा शून्य में, अनहद में विश्राम." सहजयोग के माध्यम से, ओंकार के माध्यम से, सुमिरन के माध्यम से परम विश्राम पाया जा सकता है. मुख्य बात यह है कि सुमिरन में सदा रहा जा सकता है. इस प्रकार सुमिरन के माध्यम से हमारी चेतना प्रभु प्रेम से भर जाती है, तृप्त हो जाती है, परम विश्राम को उपलब्ध हो जाति है. फिर तो एक अदभुत शान्ति उतर आती है, अदभुत आनंद छलक आता है, अदभुत मस्ती छा जाति है.
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बोरियत की महामारी से मुक्त होने का सबसे कारगर तरीका सुमिरन है. पहले बोरियत कोई बड़ी समस्या नहीं थी. जीविकोपार्जन में ही अधिकतर समय व्यतीत हो जाता था. आवश्यकताएं भी सीमित थीं. लेकिन आज न आवश्यकताओं की सीमा है, न मनोरंजन की. न भोगों की सीमा है, न वासनाओं की. आज मनोरंजन के साधनों के विस्तार के साथ-साथ बोरियत के साम्राज्य का भी विस्तार हो रहा है.
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पहले संत कहा करते थे कि सुमिरन के द्वारा नाम की पूँजी कमाओ, मृत्यु के बाद काम आएगा. आज के सन्दर्भ में मैं कहना चाहता हूँ कि सुमिरन करो, ताकि आज जीवन आनंद में, शान्ति में, विश्राम में जी सको.