सिद्धार्थ उपनिषद Page 97
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स्वयं की उपस्थिति का मजा लेना आनंद है . किसी अन्य की उपस्थिति का मजा लेना प्रेम है . एक साथ अनेक की उपस्थिति का मजा लेना उत्सव है .
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आज के आदमी की सबसे बड़ी समस्या उसकी बोरियत है , उदासी है , अकेलापन है . आज आदमी अपने मन से भाग रहा है , अपने आप से भाग रहा है -- सिनेमाघरों की ओर , मयखानों की ओर , जुआघरों की ओर , क्लबों की ओर . वहां वह अपने अवचेतन से थोड़ी देर के लिए जुड जाता है . इस तरह इन स्थानों पर मन को क्षणिक विश्राम तो मिलता है , लेकिन मन पुनः बेचैन हो जाता है . अवचेतन से जुडना मन का विश्राम है .
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अवचेतन से जुड़ने का श्रेष्ठतम तरीका प्रेम है . इसलिए जगत में प्रेम का इतना आग्रह है . लेकिन लौकिक प्रेम अहंकार से शीघ्र प्रभावित हो जाता है . इसलिए देखा जाता है कि लौकिक प्रेम लंबे समय तक नहीं टिकता .
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उन्मन अवस्था में जाकर मन से मुक्त हुआ जा सकता है. विश्राम पाया जा सकता है. इस प्रकार ध्यान, साक्षी और समाधि द्वारा उन्मन अवस्था प्राप्त कर विश्राम को उपलब्ध हुआ जा सकता है. लेकिन उन्मन अवस्था में सदा जीना व्यावहारिक नहीं है.