सिद्धार्थ उपनिषद Page 94
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शब्द का अर्थ है निरंकार अर्थात ओंकार से भरपूर निराकार , ओंकार से गूंजता हुआ निराकार , ओंकार से जगमगाता हुआ निराकार , ओंकार से चेतन निराकार . शब्द ही आत्मा है . शब्द ही परमात्मा है.
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स्वामीजी कहते हैं - " शब्द बिना सब झूठा ज्ञान . शब्द बिना सब थोथा ध्यान . शब्द छोड़ मत अरे अजान . राधास्वामी कहे बखान . "
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सहजयोग के केन्द्र में शब्द है . शब्द से ही जीवन का रहस्य जाना जाता है . दादू साहब कहते हैं - " शब्दै बंध्या सब रहै , शब्दै सब ही जाए . शब्दै ही सब उपजे , शब्दै सबै समाए . शब्दै ही सच पाइए , शब्दै ही संतोष . शब्दै ही स्थिर भया , शब्दै भागा शोक . शब्दै ही मुक्ता भया , शब्दै समझें प्राण . शब्दै ही सूझे सबै , शब्दै सुरझे जाण . "
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कबीर साहब कहते हैं - " शब्दै गुरु शब्दै चेला . " अर्थात शब्द का भेद जानकर ही कोई गुरु और कोई शिष्य होता है . कबीर साहब अन्यत्र कहते हैं - " साधो शब्द साधना कीजै . जेहि शब्द तें प्रगट भये सब , सोई शब्द गहि लीजै . शब्दहि गुरु , शब्द सुनि सिष भे , शब्द सो बिरला बूझे . सोई शिष्य सोई गुरु महातम , जेहि अंतरगति सूझे . शब्दै बेद पुराण कहत हैं , शब्दहि सब ठहरावें . शब्दहि सुर नर मुनिजन गावै , शब्द भेद नहीं पावैं . शब्दै सुनि मुनि भेख धरत हैं , शब्द कहै अनुरागी . षट्दर्शन सब शब्द कहत हैं , शब्द कहै बैरागी . शब्दै माया जग उतपानी , शब्दै केरि पसारा . कहै कबीरा जंह शब्द होत है , तवन भेद है न्यारा .