सिद्धार्थ उपनिषद Page 93
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धर्म में शोषण के लिए कोई स्थान नहीं है , चाहे वह धन का हो या यौन का . हमारी दृष्टि में प्रेम जितना वन्दनीय है , बलात्कार और शोषण उतना ही निंदनीय है . प्रेम दायित्व है , शोषण दायित्वहीनता है . प्रेम दान है , शोषण लूट है . प्रेम संवेदना है , शोषण संवेदनहीनता है. प्रेम वरदान है , शोषण अभिशाप है . माना कि शोषण की अधिकतर ख़बरें बाढा - चढाकर पेश की जा रही है , या बदनाम करने के उद्देश्य से प्रचारित की जा रही हैं. फिर भी साधकों को विवेक पूर्ण एवं सावधान रहने की जरुरत है .
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सहजयोग में साधना के चार मूलभूत आधार हैं -- सुरति , निरति , शब्द और सुमिरन . कबीर साहब कहते हैं - " सुरति , निरति और शब्द ये , कहिबे को हैं तीन . सुरति पलटि निरतहि मिली , निरति शब्द में लीन .
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सुरति का अर्थ है भीतर सुनना , अनहद नाद को निराकार में सुनना . केवल अनहद नाद सुनना श्रवण है , सुरति नहीं . निराकार को स्रोत के रूप में जानकर , अनहद नाद सुनना सुरति है .
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निरति का अर्थ है भीतर देखना , दिव्य प्रकाश को निराकार में देखना . केवल दिव्य प्रकाश दखना दर्शन है , निरति नहीं . निराकार से जुडकर , निराकार को स्रोत के रूप में जानकर , दिव्य प्रकाश देखना निरति है .