सिद्धार्थ उपनिषद Page 137
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आत्मा केन्द्र की तरह है मन परिधि की तरह है . आत्मा सूर्य की तरह है मन उसकी किरण की तरह है . आत्मा निराकार है मन आकार है . आत्मा सब्जेक्टिव कान्सशनेस है मन आब्जेक्टिव कान्सशनेस है . मन में विचार होता है आत्मा में विचार नहीं होता है . मन में विषय होता है आत्मा में विषय नहीं होता है . मन में विकार होता है आत्मा में विकार नहीं होता है . मन का आकार है आत्मा का कोई आकार नहीं है .
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" आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे..." यह अगर किसी बंदे के लिये गाया जाए तो गीत है . गुरु के लिए , गोविन्द के लिए गाया जाए तो गीता हो गया . "जूली आई लव यू " अगर जूली कोई लड़की है तो गीत है और अगर जूली परमात्मा है तो गीता है . इसलिए गाने को गीता समझ के गाना है , गीत समझ के नहीं . भाव पर बड़ा निर्भर है . " मानो तो मै गंगा मां हूँ , न मानो तो बहता पानी " करोड़ों-अरबों लोगों का हजारों साल से जो पवित्रता का भाव जुड़ गया उसने गंगा को गंगा बना दिया . अभी भी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं ; कि गंगा के पानी में ऐसा क्या है ? जो दूषित नहीं होता , खराब नहीं होता . वो कभी भी नहीं जान पाएंगे . क्योंकि ये करोड़ों-करोड़ों भारतवासियों का भाव है पवित्रता का , जिसने गंगा को गंगा बना दिया है . तुम्हारे भाव की ऊर्जा होती है , तुम्हारे भाव की शक्ति होती है .