सिद्धार्थ उपनिषद Page 136
(409)
जीवित गुरु के साथ तुम रुक नहीं सकते किसी विधि पर . लेकिन
जब विधि देकर गुरु शरीर से विदा हो गया तब ज्यादा खतरा है , वह विधि
तुम्हारे लिए अटकाव बन जाए . ओशो के साथ ऐसा दुर्भाग्य हुआ ; वे दे के गए
सक्रिय-ध्यान . आध्यात्म के लिए "सक्रिय-ध्यान" नर्सरी-क्लास की बात है .
लेकिन सब रुक गए . गजब का दुर्भाग्य हुआ ! ओशो ने कहा किसी विधि पर रुको मत
, उस विधि पर रुको मत . जीवित गुरु के पास रहोगे तो तुम्हारी यात्रा के
लिए आगे की विधियाँ देता रहेगा . जीवित गुरु जानता है तुम्हें कहां आगे
बढ़ाना है , कैसे आगे बढ़ाना है . अगर जीवित गुरु के साथ चलते रहे , चलते रहे
... जीवित गुरु हमेशा नया होता है , विधियाँ पुरानी पड़ जाती हैं . जीवित
गुरु कभी पुराना नहीं पड़ता क्योंकि झरना ऊपर से सदा झरता रहता है . जीवित
गुरु बचा के तुमको ले चलता है और "परमपद" तक पहुंचा देता है .