सिद्धार्थ उपनिषद Page 135
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तुम्हें पता है हमारी मां कितनी रातें हमारे लिए जागती है . मां ने जो हमारे लिए किया है क्या हम चुका सकते हैं ? कभी चुकाया जा सकता है . माना कि मां जैसा पिता का योगदान नहीं होता है ; फिर भी लालन-पालन में ,पढ़ाने में कसर तो नहीं रखता , जो भी किया जा सकता है लालन-पालन में करता है . सम्मान तो सभी का करना है . माता-पिता का सर्वाधिक सम्मान करना है .
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" मन मस्त हुआ तो क्यों बोले ." मन मस्त हो गया तो बोलेगा भला ! नहीं बोलेगा . ओशो दिनभर नहीं बोलते थे . केवल सुबह प्रवचन देने आये बोलते थे , शाम प्रवचन में बोलते थे . बुल्लेशाह कहते हैं-" वाक् सुखं चुपकित्ता ." वाक् मतलब - अनाहतनाद . ऐसा आनंद मिला कि अब चुप हो गया मैं . तो निश्चित रूप से सुमिरन तो चुप रहकर ही किया जा सकता है . अगर बोलोगे तो सुमिरन कैसे होगा . कम बोलने की आदत डालो . जरूरी हो तो बोलो . कोई तुम्हारी सलाह मांगे तो तुम जरूर बोलो . ध्यानी को , भक्त को अधिक से अधिक मौन रहना चाहिए .