सिद्धार्थ उपनिषद Page 134
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जैसे इस पूरे अस्तित्व में परमात्मा सर्व व्यापी है , ऐसे ही हमारे शरीर में आत्मा सर्वव्यापी है .(406)
गुरु से प्रीति होने लगे समझना गुरु-कृपा हुई और गुरु से प्रीति बढ़ने लगे समझना गोविन्द की कृपा हुई . गुरु से प्रेम बढ़ने का एक ही तरीका मैं बता सकता हूँ . गुरु से जुड़ने के पहले तुम्हारी जिंदगी क्या थी ? और गुरु से जुड़ने के बाद तुम्हारी जिंदगी क्या है ? देखो ! मैं तो स्वयं अपने बारे में सोचता हूँ- बेडरूम में ओशोकी तस्वीर लगी है ; सोने जाता हूँ प्रणाम करता हूँ , बीच में रात में नींद टूटी तो पहले प्रणाम करता हूँ बाथरूम बाद में जाता हूँ , बाथरूम से लौटता हूँ प्रणाम करता हूँ सोता बाद में हूँ . क्यों ? अगर मेरे गुरु मेरी जिंदगी में नहीं आये होते तो मेरी जिंदगी क्या होती ; एक रिटायर्ड जनरल मैनेजर . रांची के किसी फ़्लैट में अपनी मृत्यु का इन्तजार कर रहा होता , कोई मिलने भी नहीं आता . रिटायर्ड आदमी से कौन मिलने आता है ." किसी काम के थे नहीं कौड़ी सी थी देह , सद्गुरु ने कृपा कीन्हीं भई अमोलक गेह ."