सिद्धार्थ उपनिषद Page 132
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धर्म क्या है ? दूसरे का हित करना , भला करना पुण्य है , धर्म है . और दूसरे को सताना पाप है . धर्म के नाम पर कम से कम किसी को सताओ तो नहीं . तुलसीदास जी कहते हैं-" परहित सरस धरम नहीं भाई , पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ." अब जितने आतंकवादी हैं ये सब धर्म के नाम पर अधर्म कर रहे हैं . सबको काट रहे हैं , मार रहे हैं . बोधगया में ब्लास्ट कर रहे हैं , गांधी मैदान में ब्लास्ट कर रहे हैं . ये सब किसके नाम हो रहा है , ये सब धर्म के नाम पर हो रहा है . सच कहो तो धर्म के नाम पर जितना अधर्म हुआ है उतना अधर्म किसी और नाम पर हुआ ही नहीं . धर्म क्या है-- " घर से बड़ी दूर है मस्जिद तो चलो , किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए ." ये धर्म है .
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भीखा कहते हैं-" भीखा भूखा कोई नहीं सबकी गठरी लाल , गिरह खोल नहीं जानते ताते भये कंगाल ." कोई अनाथ नहीं , कोई दीन नहीं , कोई दरिद्र नहीं . सबकी गठरी में लाल... माणिक्य हैं - आत्मा का माणिक्य . "गिरह खोल नहीं जानते ताते भये कंगाल". हम सब सम्राट हैं . अमृतस्य पुत्रः , पर हमें पता ही नहीं . यही तो संतों कि करुणा है वे हमें बार-बार जगाते हैं कि तुम कौन हो ! तुम्हारा असली चेहरा क्या है ! तुम्हारी असली पहचान क्या है ! लेकिन हम संतों की बात सुनने को तैयार नहीं हैं . राजगीर में गौतम बुद्ध का वचन अंकित है--" यह जानते हुए कि कोई मेरी बात सुनता नहीं है , और जो सुनता है वो समझने की चेष्टा नहीं करता है . फिर भी मैं इस पर्वत पर बोले चला जाता हूँ .