सिद्धार्थ उपनिषद Page 128
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" है चिता कि राख कर में , मांगती सिन्दूर दुनियां ." अपने हाथों में चिता की राख लिए चलोगे और सोचते हो कि सारी दुनियां तुम्हें सिन्दूर लगायेगी , तो ऐसा तो नहीं होगा . अपनत्व चाहिए तो बाँहें फैलाओ . तुम चाहते हो सारी दुनियां तुमें प्रेम करे तो शुरुआत तो तुम्हीं को करना पड़ेगा . जगत को जो तुम देते हो ; जगत हजार गुना देकर तुमको लौटा देता है . तुम घृणा दो - घृणा लौटेगी . तुम प्रेम दो- प्रेम लौटेगा . तुम अपमान दो - हजार अपमान तुम्हारा इन्तजार करेगा . ये प्रतिध्वनि की तरह है .
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मन की तीन अवस्थाएं हैं - चेतन , अवचेतन , अचेतन . चेतन मन -- जागे हुए में जो काम करता है उसका नाम चेतन मन है . चेतन मन का स्थान विशुद्दचक्र है . और फिर जब नीचे ( अनाहत-चक्र) की यात्रा हुई ; फीलिंग , भाव , प्रेम . जैसे सम्मोहन में जाते हो ; अर्ध-निद्रा - जिसको तन्द्रा कहतें हैं . वो अवचेतन मन है . प्रेम में चेतन मन mooved नहीं होता है. अवचेतन मन प्रेम में पड़ता है . " लाख मुखड़े मिले और मेला लगा , रूप जिसका जंचा वो अकेला लगा ." लाखों चेहरे हैं जगत में मगर जिसको तुम प्रेम करते हो वो जगत का सर्वाधिक सुंदर चेहरा हो जाता है . अगर सर्वाधिक सुंदर नहीं दिखता है , तो उसके सौंदर्य में कहीं कमी नहीं होगी , तुम्हारे प्रेम में कमी होगी . अवचेतन मन प्रेम में पड़ता है इसलिए चेतन मन उसको नहीं समझा सकता . अवचेतन मन 9 times पावरफुल है चेतन मन के . अवचेतन में तुम हृदय (अनाहत चक्र) में होते हो . और जब चेतना नाभि-केन्द्र पर पहुँच गई तो अचेतन मन सक्रिय हो जाता है . गहरी नींद में ; अब तुम बेहोश हो अब तुम्हें न बाहर का, न समय का , न विचारों का , कुछ पता नहीं है . जब सोने जाते हो तो तुम्हारी चेतना अवचेतन से होकर अचेतन में जाती है . अचेतन का अर्थ है तुम बाहर से पूरी तरह बेखबर हो .