सिद्धार्थ उपनिषद Page 127
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दुर्भाग्य से दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु हो सकती है तो बेहोशी में - याद रखना . सारे जीवन की साधना यही है कि होश में हम शरीर छोड़े . तुम होश में ओंकार का श्रवण करते हुए , निराकार गोविन्द को देखते हुए विदा हो . लेकिन भवसागर में लोग फंस जाते हैं ; वहां तक पहुँचते ही नहीं अंतर्जगत में - बस विचारों में उलझे रह जाते हैं . होशपूर्वक मृत्यु - ये आखिरी पुरस्कार है भक्त के लिए .
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नेति,नेति,नेति ये वेद , उपनिषदों की बात हुई . ओशो के बाद एक दूसरा वेद शुरू हो जाता है . नेति , नेति , नेति जैसी कोई चीज ही नहीं है . अगर तुम अनुभव कर सकते हो तो बता भी सकते हो . वो शक्ति तुम्हें अर्जित करनी है .
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"जा पर कृपा राम की होई , ता पर कृपा करे सब कोई ." सब लोग तुम्हारे प्रति प्रेमल हो रहे हैं तो समझना राम की कृपा हो रही है. सब तुम्हारे विरोध में खड़े हो रहें हैं , समझना राम की कृपा नहीं हो रही है . अगर राम की कृपा प्राप्त करनी हो तो राम के बन्दों की कृपा प्राप्त करो .