सिद्धार्थ उपनिषद Page 126
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अगर तुम्हारे पूर्वज का विश्वास था कि हमारा श्राद्ध होना चाहिए तो उनके लिए श्राद्ध बहुत जरूरी है .अगर तुम उनका श्राद्ध नहीं करोगे तो उनकी गति नहीं होगी और तुमसे भी नाराज होंगे . हाँ , ओशोधारा का कोई विदा हो तो श्राद्ध करने की जरुरत नहीं है .
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अपने निराकार का स्मरण रखो . मै निराकार हूँ . बस ! फिर जो भी करो ... मैं चैतन्य निराकार हूँ . फिर तो जो भी करोगे उसमें मजा है .
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कोई भी कृत्य हो उसको करने का मजा लो . लोग करने का तो मजा ही नहीं लेते . लोग तो फल का मजा लेते हैं . आज फसल बो रहे हो ; और एक दिन फसल तैयार होगी , काटेंगे , दौनी करेंगे , तब मजा लेंगे . मूरख ! जब तुम फसल बो रहे हो - क्या बारिश हो रही है ! क्या पंछी गीत गा रहे हैं ! क्या जल है ! क्या बैल चल रहा है ! क्या ट्रेक्टर चल रहा है ! जो हो रहा है क्या आनंद लेने के लिए काफी नहीं है . जो तुम कर रहे हो उसका मजा लेना ही योग है और परिणाम पर जिसकी नज़र है वो संसारी है . मेरी और कृष्ण की परिभाषा यही है-- कर्म का मजा लो .