सिद्धार्थ उपनिषद Page 122
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जब भी तुम देख रहे हो - समाधि में नहीं हो . अंतर-आकाश में देखते-देखते कभी ऊपर के आकाश की जगह गलती से नीचे चले गए तो वहां पर जैसा तुम्हारा गियर लग गया . बहुत बार मुझसे लोग कहते हैं आप मेरे सपने में आये थे , आपने ऐसा-ऐसा उपदेश दिया , ऐसा-ऐसा direction दिया और मैं भी मुस्कुराता हूँ . क्योंकि मैं कहीं गया ही नहीं इसलिए मुस्कुराता हूँ . लेकिन यह भी नहीं कहता तुमने गलत देखा . क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरा मदरक्राफ्ट वहां हाजिर था , वो पहुँच गया . तार जुड़ जाए तो मदरक्राफ्ट वहां आ सकता है . उसकी कोई सीमा नहीं , उसको तुम देख सकते हो . मगर तब तक समाधि नहीं . हमारी चेतना पांचवें चक्र ( विशुद्ध चक्र) में रहती है .जब ऊपर गए आज्ञाचक्र पर सहस्रार चक्र पर : तो समाधि लगती है . और जब पांचवे चक्र से नीचे अपने हृदय चक्र (अनाहत चक्र) में उतर आये तो नाना प्रकार की छवियाँ , विजन : ये सब दिखाई पड़ते हैं .