सिद्धार्थ उपनिषद Page 121
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दिव्य-आकाश - अंतर-आकाश . जो घट के भीतर थ्री-dimensional है : गहराई के साथ . उसको दिव्य-आकाश कहते हैं . जहाँ नाद गूँज रहा है , जहाँ नूर जगमगा रहा है , जहाँ चैतन्य आत्मा का वास है . और बंद ही आँखों से इस आकाश का विस्तार देखते हो तो उसका नाम परम-आकाश है . और जब खुली आँखों से उसका विस्तार देखते हो , उसका नाम सहजाकाश है . इसके ऊपर एक अचलाकाश है . उसके ऊपर एक ओमाकाश है . सात आकाश की साधना ओशोधारा में है . मुहम्मद साहब कहते थे - सात आसमान . प्रेम समाधि तक दिव्य-आकाश की साधना , अद्वैत सामाध से लेकर निर्वाण समाधि तक परमाकाश की साधना , सहज सामाधि से प्रेम सुमिरन सहजाकाश की यात्रा , उसके आगे अचलाकाश की यात्रा होगी , उसके आगे ओमाकाश की यात्रा होगी .