सिद्धार्थ उपनिषद Page 119
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जब अंतर-आकाश के ऊपर-ऊपर ही तैर रहे हो यह ध्यान है . और जब डुबकी लग गई तो समाधि है . अर्थात ध्यान में जानते हो कि मै जागा हूँ - निराकार के प्रति , तुम निराकार से करीब-करीब अलग-थलग हो . लेकिन समाधि में अलग-थलग तुम्हारी हैसियत नहीं रही , तुम उसके हिस्से हो गए : उस अंतर-आकाश के हिस्से हो गए , बूँद सागर में खो गई . ध्यान का मतलब है बूँद अभी पानी में गिरी नहीं है . पानी से अभी ऊपर-ऊपर देख रही है . गिरने के पहले की स्थिति है-ध्यान .
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स्वाभिमान का अर्थ है कि मैं अपनी नज़रों में : मैं अपना RESPECT करता हूँ . I RESPECT MY SELF.लेकिन कारण क्या है ? हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है , मैं भारत का रहने वाला हूँ , मैं राम ,कृष्ण की संतान हूँ , मैं ओशोधारा को बिलोंग करता हूँ . परमगुरु (ओशो) , सद्गुरु त्रिविर जैसे हमारे सद्गुरु हैं , इसलिए वहां से जुड़ने के कारण मै स्वयं को धन्य मानता हूँ . मै स्वयं का सम्मान करता हूँ - कि , वाह रे मन ! इतनी प्रज्ञा तुम में जग गई कि तुम सही जगह पहुँच गए . इसलिए मै अपना सम्मान करता हूँ , मै अपना RESPECT खुद करता हूँ - इसका नाम स्वाभिमान है . स्वाभिमान बहुत अच्छी चीज है. साधना में सहायक है .