सिद्धार्थ उपनिषद Page 116
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आचार्य का अर्थ हुआ जो प्रभु के मार्ग पर तुम्हें ले चले . वह किसी सद्गुरु का प्रतिनिधि होता है . जो सदगुरु के बताये हुए मार्ग पर चलने में तुम्हारी मदद करता है . उसका नाम आचार्य है .
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गुरु कौन है ? सभी गुरु सद्गुरु हों , सत्य को जानते हों ऐसा जरूरी नहीं है . बहुत से गुरु स्वयं ही सत्य को नहीं जानते हैं , लेकिन वो गुरु बन जाते हैं . कुछ लोग मान करके कि परमात्मा है , आत्मा है , मानकर के गाइड तुमको करते हैं . कुछ लोग जान करके करते हैं . जो जान करके कर रहा है , वो सद्गुरु है . जो मान करके कर रहा है , वो गुरु तो है सद्गुरु नहीं है .
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संत तो वह है जिसने परमात्मा को जाना और अपने जीवन में संतुलित हो गया , सहज हो गया . संसार और परमात्मा में जो आसानी से गियर बदल सकता है . भक्त कौन है जो परमात्मा में जीता है , उसको संसार में आने में बड़ी अड़चन है . संसारी कौन है ? जो संसार में grounded है , उसको परमात्मा की दिशा में जाने में बहुत मुश्किल है . संत का मतलब जो संतुलित हो गया . संत जो भीतर का भी ज्ञान रखता है बाहर संसार में भी उसकी प्रज्ञा गजब की है , प्रज्ञावान है . अनुभव कि पूँजी है और प्रज्ञा की पूँजी है ." जोरबा दि बुद्धा " जिसको ओशो कहते हैं .