सिद्धार्थ उपनिषद Page 115
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मुझे ही देखो बात-बात में ओशो की चर्चा करता हूँ . तुम मेरा अनुकरण शुरू कर देते हो, कि हम भी बात-बात में अपने गुरु की याद करें . ये तुम भूल जाते हो कि मै कर क्या रहा हूँ ? मैं तो दिन-रात गोविन्द के सुमिरन में रह रहा हूँ . अपने गुरु को हृदय में धारण करना और सुमिरन गोविन्द का कर रहा हूँ . मै तुम्हें भी बता रहा हूँ अपने गुरु को हृदय में धारण करो और सुमिरन गोविन्द का करो . अब मेरी बात न मानकर केवल अपने गुरु को याद कर रहे हो तो फिर तो तुम्हारा विकास नहीं होगा . इसलिए गुरु को प्रेम खूब करना है . मगर गुरु के प्रेम का हिस्सा यह भी है , कि गुरु जो कह रहा है : वो करो . सभी गुरु कहते हैं गोविन्द का सुमिरन करो , प्रभु का सुमिरन करो . तो प्रेम गुरु से , सुमिरन हरि का और बात बन जायगी .(369)
जिसे तुम प्यार करते हो अगर कोई उसकी आलोचना करता है . तो तुम्हें चोट पहुँचती है . फिर उससे वाद-विवाद करते हो . ये तुम भूल जाते हो कि जितना तुम्हें किसी को प्यार करने का अधिकार है , उतना ही किसी और को उसकी आलोचना करने का भी अधिकार है . इसलिए अगर कोई तुम्हारे गुरु कि आलोचना करता है तो वाद- विवाद मत करो .नामदेव कहते हैं-" वाद-विवाद काहू से न कीजै , रसना राम-रसायन पीजै ." तुम्हारी मुस्कान , तुम्हारी मौज , तेरा अपने गुरु के प्रति प्रेम ; यह असली उत्तर है . वाद-विवाद की जरुरत नहीं है . जितनी देर वाद-विवाद करोगे उतनी देर सुमिरन में रह सकते हो.