सिद्धार्थ उपनिषद Page 114
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सुरति दूध है, निरति दही है और शब्द मक्खन है . नाद सुन रहे हो दो कौड़ी , नूर देख रहे हो दो कौड़ी . " साधो शब्द साधना कीजै ."(365)
यज्ञ-अनुष्ठान की साधना शक्ति के लिए है परमात्मा केलिए नहीं . शक्ति की साधना करोगे तो शक्ति स्वामिनी बनकर आती है . "शब्द" की साधना करोगे तो शक्ति दासी बन कर आती है .(366)
जो भी साधना है वो निराकार से सम्बंधित है . निराकार ही चौराहा है . निराकार के बिना साधना नहीं है .
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पीर परस्ती और खुदा परस्ती ये दो आध्यात्म के मुख्य आयाम हैं . जैसे सूफीज्म है उसमे पीर परस्ती का अनुपात ज्यादा है , खुदा परस्ती का अनुपात कम है . संत मत है ; जैसे राधास्वामी है - उसमें भी पीर परस्ती है . कभी-कभी वरदान अभिशाप बन जाता है .ऐसे ही अगर बहुत ज्यादा ; एक रेसियो रखना पड़ेगा . हम गुरु को प्रेम करें... लेकिन गुरु जो कह रहा है वो करें . बहुत सारे लोग कहते हैं बस गुरु को प्रेम करो . गुरु तो नहीं कहता है केवल मुझे प्रेम करो . गुरु तो कहता है गोविन्द का सुमिरन करो . " गुरु कहै सो कीजिये , करे सो कीजै नाहिं ."