सिद्धार्थ उपनिषद Page 111
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ओशोधारा का मार्ग एक तीसरा मार्ग है . वो मार्ग का नाम है-- संवृत्ति मार्ग : आती सांस में भक्त हो जाओ और बाहर जाती सांस में ज्ञानी हो जाओ . ज्ञानी भी बनकर जीओ एक साथ और भक्त बनकर भी जीयो एक साथ .
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दिल्ली में तो नीला आकाश देखने के लिए एक जगह बना दी गई है , जिसमें टिकट लगता है . इससे तो सुन्दर आकाश हमारे कर्मा का है वो भी बिना टिकट के .ये आकाश ! इससे दोस्ती करो . और सच कहो तो आध्यात्मिक साधना का पहला कदम भीतर के आकाश से दोस्ती करना है ; वही आत्मा है . और अगला चरण बाहर के आकाश से दोस्ती करना . 28 कार्यक्रम हैं ओशोधारा में . 14 कार्यक्रम में भीतर के आकाश से दोस्ती बताई जाती है . और 15 से लेकर 28 तक बाहर के आकाश से दोस्ती करना सिखाया जाता है . ओशो कहते है- " जिसने बाहर के आकाश की जीवन्तता (चैतन्यता) को जाना उसने परमात्मा को जाना ." इससे दोस्ती करो बात बन जायेगी .