सिद्धार्थ उपनिषद Page 110
सिद्धार्थ उपनिषद Page 110
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शिष्य का एक ही कर्त्तव्य है गुरु के काम को आगे बढाओ . सुपुत्र कौन है ? जो अपने पिता के साम्राज्य को और बढाता है . पिता के द्वारा पैदा किया हुआ धन ही तुम खा रहे हो तो सुपुत्र नहीं हुए . अब ओशो ने जितना दिया हमें , अगर हम ओशो की ही पूँजी को चबाते रहें, भैंस जैसा पगुराते रहें ; तुम सोचते हो इससे ओशो प्रशन्न होंगे. नहीं ! गुरु ने जितना विराट कार्य को किया हम उसको और अधिक विराटता दें ,ओर अधिक ऊंचाई दें , और अधिक गहराई दें : ये शिष्य का कर्त्तव्य है . गुरु के सपने को अपना सपना बना लें .(356)
अधिकार को उपहार बना दो . कर्म करने का अधिकार है , फल पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है . फल के साथ तुम्हारा सम्बन्ध उपहार जैसा हो ,अधिकार जैसा नहीं .(357)
एक निवृत्ति मार्ग है , एक प्रवृत्ति मार्ग है . निवृत्ति मार्ग है सब छोड़ दो कोई मेरा नहीं है ; मोह से मुक्त हो जाओगे . एक प्रवृत्ति मार्ग है- इतना छोटा सा परिवार क्या : सब मेरा है - ये पूरा ब्रह्माण्ड , पूरी दुनियां ; वसुधा ही मेरी कुटुंब है .निवृत्ति मार्ग ज्ञान का मार्ग है . प्रवृत्ति मार्ग भक्ति का मार्ग है . दोनों मार्गों से तुम मोह से मुक्त हो सकते हो .