सिद्धार्थ उपनिषद Page 109
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प्रवचन से आत्मज्ञान नहीं होगा . प्रवचन से प्यास जगेगी . मैं जो यहाँ बोल रहा हूँ प्यास जगाने के लिए बोल रहा हूँ . actual तो जब तुम समाधियां करोगे तब जाकर अनुभव ज्ञान होगा . साधना में जब उतरोगे तब ज्ञान पैदा होता है . प्रवचन से ज्ञान नहीं पैदा होता है . साधना से , ध्यान से ज्ञान पैदा होता है .
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समाधि के तल पर कुछ होता ही नहीं है . तो फिर वर्णन कैसे करोगे ? कुछ नहीं होता है; डूबना होता है . होश पूरा है , डूबना है . जैसे नदी में डूबोगे, तो डूब जाओगे . क्या होगा ? जब निकलोगे तब न अनुभव करोगे कि डूबने में बड़ा मजा आया .लेकिन जिस समय तुम डुबकी लगाकर अंदर गए हो उस समय क्या हो रहा है ? उस समय कुछ भी नहीं हो रहा है ; बस डूब रहे हो . जब वहां से निकलोगे तब कहते हो- मजा आया क्या डुबकी लगी , क्या ताजगी ? ऐसे ही जब समाधि से बाहर निकलते हो तो आत्मा का स्नान हो गया . लेकिन जब डुबकी लगी , समाधि के पीरियड में क्या हुआ ? आज तक कोई नहीं बता पाया और आगे भी कोई नहीं बता पायेगा . हाँ ! उसके पहले की बात कही जा सकती , उसके बाद की बात कही जा सकती है . समाधि हुई , बस हुई, उसमें क्या हुआ ? यह नहीं कहा जा सकता है .