सिद्धार्थ उपनिषद Page 105
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गुरु ने हमें क्या दिया अगर नज़र इस पर है तो इसका नाम अहोभाव है . इसलिए ओशोधारा में हम हमेशा कहते हैं . श्रद्धा पर बेस्ट मत रखो , अहोभाव पर बेस्ट रखो . अब ओशो डायमंड पहनते थे कि रोयल्स रोयस में चलते थे : इससे क्या मतलब ? आध्यात्म की उन्होंने क्या दृष्टि दे दी है ? क्या आध्यात्म का आकाश दे दिया है ? आध्यात्म को किस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है ? ये महत्वपूर्ण है .(343)
ओशो एक बड़ी प्यारी बात कहते हैं-- " हमारी प्रार्थना के शब्द परमात्मा के पास पहुँचते हैं कि नहीं पहुँचते , यह कहना तो बहुत मुश्किल है . मगर तुम्हारी आँख के आंसू जरूर पहुँच जाते हैं वहां . धन्य हैं वो जिनके पास आंसूओं की पूँजी है . धन्य है वे जो रो सकते हैं . कहते है कि ये सावन भादों की बरसात को भी इन आँखों से झरे आंसुओं की बरसात से फीका किया जा सकता है .(344)
जब ऊर्जा जागती है पहली बार तो अपना रास्ता खोजती है . कभी-कभी तुम्हारा शरीर इसके लिए तैयार नहीं होता है . फिर कई अनुभव होने शुरू होते हैं . तुम्हे भी लगता है यह क्या हो रहा है ? पहले तो नही हुआ . बड़े मजे की बात बताता हूँ-- शुरू के दिनों की बात है . शैलेन्द्र (छोटे गुरु जी) जी ध्यान-शिविर लेने जाते थे . एक दिन उन्होंने कहा - स्वामी जी हर ध्यान शिविरों में 4-5 लोग मिल जाते हैं , जो अपने नए-नए अनुभव बताते हैं : कोई कहता यहाँ ऊर्जा जाग रही , वहां ऊर्जा अनुभव हो रही... लेकिन मेरे साथ तो ऐसा कभी हुआ ही नहीं. मैंने उनसे कहा तुम्हारे पाथ तो पहले से ही सारे क्लियर हैं , तो अनुभव कहाँ होगा . बल्ब तो वहां जलेगा न , जहाँ बाधा हो . अगर कोई बाधा ही न हो तो क्या कोई बल्ब जलेगा ? तो जिनके शरीर में ऊर्जा पाथ में कोई बाधा है , उन्हें कुछ होगा . और जिनका पाथ बिलकुल क्लियर है उनको कुछ भी अनुभव नहीं होगा , शरीर के तल पर . लेकिन बिलकुल उलटी बात है जिसको कुछ होता है वो भी दुखी हैं : पता नहीं क्या-क्या हो रहा है ? जिसको कुछ नहीं हो रहा है वो भी दुखी हैं : कि हमें तो कुछ हो ही नहीं रहा है .लेकिन खुश दोनों को होना चाहिए . जिसको कुछ नहीं हो रहा है ; इसका मतलब पूर्वजन्मों की साधना बड़ी तगड़ी है . और जिसको कुछ हो रहा है उसको भी खुश होना चाहिए : कि , कुछ तो हो रहा है . इसीलिये तो आये थे