सिद्धार्थ उपनिषद Page 102
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मन की निष्क्रियता मन का विश्राम , मन का ठहराव मौन है . जाग्रत , सुषुप्ति , स्वप्न के पार तुरीयावस्था में मौन घटित होता है . साक्षी , ध्यान , समाधि अथवा सुमिरन द्वारा हम तुरीयावस्था में जा सकते हैं .
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साक्षी का अर्थ है आत्मस्मरण के साथ जीना . भीतर आती सांस के साथ संसार और बाहर जाती सांस के साथ अपनी निराकार आत्मा का स्मरण साक्षी है . भीतर आती सांस के साथ परमात्मा और बाहर जाती सांस के साथ अपनी निराकार आत्मा का स्मरण साक्षी सुमिरन है . यूं तो कंठ से , मन से या हृदय से भी सुमिरन किया जा सकता है . किन्तु ओशो की दृष्टि में साक्षी-सुमिरन श्रेष्ठ है .